प्रकृति हमारी है उपकारी ,
उसे बचाने की अब बारी ।
छोटे-बड़े एक मंच पर आयें ,
सब मिल योजनायें बनायें ।
इधर - उधर कहीं न जायें ,
आओ सब शौचालय बनायें ।
प्रदूषित करे न कोई जल ,
नहीं तो संकट आयेगा कल ।
गन्दी यदि हो जायेगी हवा ,
मिल नहीं पायेगी फिर दवा ।
बहुत बुरा है ध्वनि प्रदूषण ,
इसे भी दूर करें सब प्रतिक्षण ।
सुनलो नानी सुन लो दादी ,
अन्न की करें न कभी बर्वादी ।
घर में रुके न कहीं भी पानी ,
होती इससे बहुत है हाँनी ।
जगह-जगह मच्छर पैदा होते ,
रात-दिन कोई सो नहीं सकते ।
मलेरिया डेंगू कहीं बुखार ,
जिनसे मानव जाता हार ।
पर्यावरण को स्वच्छ रखें सब ,
तन - मन शुद्ध रहेगा तब ।
ब्यर्थ न खर्चे बिजली - पानी ,
घातक सबको इनकी हाँनी ।
कोई बच्चा रहे न अनपढ़ ,
नहीं तो समझो बात है गड़बड़ ।
नशा कुसंग से सब तोड़ें नाता ,
नहीं तो मानव व्यर्थ हो जाता ।
रिश्तों को सभी मजबूत बनायें ,
मिल-जुल समाज आगे बढ़ायें ।
सामाजिक प्रदूषण भी भगायें ,
हर मानव को मिलकर जगायें ।
डॉ. सुरेन्द्र दत्त सेमल्टी
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