साहित्य चक्र

26 June 2021

।। संत कबीर ।।




मन  का  आइना ,  दोहा  मन  की  पीर ।
कभी हाथ का दीप हैं ,कभी बने शमशीर ।।

बहता तो दोनो जगह ,नदी,नयन में नीर ।
एक बुझाता प्यास को,एक बहाता पीर ।।

दर्द सिंधु - सा हो गया , गहन  और  गंभीर ।
तब गीतों में बूँद - भर, छलका उसका नीर ।।

कष्ट  चुनौती  मानिये , कहते  पीर , फकीर ।
मरने कभी न दीजिए ,निज आँखों का नीर ।।

दोहा - गीत के फेर में ,  उलझें  राँझा-हीर ।
अर्थ  प्रेम  का  बाँचने ,आओं पुनः कबीर ।।

हमने   नापी  उम्र-भर , शब्दों  की  जागीर ।
ढाई आखर लिख हुए ,जग में अमर कबीर ।।

पीड़ा जब मन में बसी ,तन-मन हुए अधीर ।
रोम - रोम गाने लगा , बनकर  दास कबीर ।।

                          गोपाल कौशल


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