साहित्य चक्र

20 June 2021

पिता एक बरगद का पेड़ है



पिता एक ऐसा रिश्ता है
जो सब रिश्तों से बड़ा है !

पिता ही है जो दुनिया में
बच्चों के लिए सबसे लड़ा है
पिता एक बरगद का पेड़ है
जिसकी छावं में बच्चे पलते हैं
पिता ही वो सूरज है जिससे
हज़ारों दीपक जलते हैं

पिता है तो सब मुश्किल आसान है
पिता है तो बच्चा कठिनाइयों से अनजान है
पिता के कंधो पर मखमल सा अहसास है
पिता है तो पुरे जहान की खुशियां आस पास है
पिता इस भवसागर की नैया है पतवार है

पिता ही बच्चों का पालनहार है
पिता हरी दूब है,मखमल है बिछौना है
पिता ही से तो हर सपना सलोना है
पिता कभी ऊँगली पकड़ कर घूमाता है
पिता कभी पीठ पर बिठाता है

पिता है जो खुद रूखी सुखी खाता है
पर बच्चों को भरपेट खिलाता है
ज़माना किस दोराहे पर खड़ा है
आज क्यों पिता बृद्धाश्रम में पड़ा है

संस्कारों की अब यह नई परिभाषा नज़र आ रही है
समझ नहीं आ रहा यह दुनियां किधर जा रही है
पिता जब नहीं होगा बहुत पछताओगे
इस दुनिया में अकेले रह जाओगे

फिर ना कोई सलाह होगी ना कोई सलाह देने वाला
पिता को याद करोगे पर कोई नहीं होगा सुनने वाला
क्यूंकी पिता की दुआओं व् आशीषों को कोई पाट नहीं सकता
उनको इंसान तो क्या भगवान् भी काट नहीं सकता

रविंदर कुमार शर्मा


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