जब से चला में तेरी ओर,
प्यार का पाया ओर न छोर।
आँखे हैं सुरमा सी काली,
गालों में गुलाब की लाली।
मस्तक में बिंदिया चमक रही
सर पर चुनरी दमक रही
खिंचता जाऊँ उसकी ओर
-जब से चला.........................।
कोयल जैसी उसकी बोली
चेहरे से है लगती भोली ।
झूमे जैसे लता की डाली
बादल बन बरसे मतवाली ।
ऐसे नाचे जैसे मोर ,
- जब से चला.......................।
रात में सोवे मचा के शोर,
जागे जब हो जाये भोर।
दिन में करती प्रेम अनोखा,
रात में सो जाएं देकर धोखा।।
उसके प्रेम का नही है छोर,
जब से चला.............. ।
बतियाँ उसकी सुंदर न्यारी,
मुझको लगती बहुत ही प्यारी ।
बांध कर अपनी प्रेम की डोर,
मन हो जाये भाव विभोर।।
दिखे मुझे वो चारों ओर ,
जब से चला........................।
स्वच्छ चांदनी बिछी हुई है,
निशा धवल सी सजी हुई है।।
एक टक मैं उसको देखूँ,
कैसे मैं खुद को रोकूँ ?
वो तो लागे चांद चकोर-
जब से चला........................ ।
शर्मीली हैं उसकी आंखें
,मन की बात मन में ही राखें।
मिले बिना ना आये चैन ,
कटे नही बिन उसके रैन।
ऐसी है मेरी चितचोर,
जब से चला...............।
बात करेगी बड़ी बड़ी,
काम करेगी डरी डरी।
सादा जीवन उच्च विचार,
करती सदा अनोखा प्यार।।
प्रेम की हिय में उठत हिलोर
-जब से चला.......................।
मन की उजली है मतवाली
उसकी है हर बात निराली
मिलूं अगर हो जाऊं पूरा ,
लगूं मैं बिन मिले अधूरा।।
मन में मिलने का है जोर-
जब से चला................... ।
मुल्क मञ्जरी भगवत पटेल
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