अब कोशल्या जी का एक एक बाल पक चुका था और उम्र भी ढलने लगी थी, और ढलती भी क्यों न उन्होंने अब तीनों बेटियों के साथ साथ बेटे की भी शादी कर ली थी।
बात उस दिन की है जब उनकी बहू मायके से आई ही थी और साथ में एक पिलाजो - कुर्ती का सेट लाई,जो उनकी दुबली पतली बहू के ढीला था साथ ही उनकी मजली बेटी का सातवा महीना लग गया था और कोशल्या जी चाहती की उनकी बेटियां मायके में आ जाए जिससे उसे डिलीवरी के समय कोई भी परेशानी ना हो।
मां की ज़िद को सराखो पर रख कर और भाभी के साथ कुछ बख्त बिताने के लिए रति अपने मायके आ गई। आज रति का आठवां महीना लग गया था।
“मां अब समझ नही आता कैसे कपड़े पहनू इस बढ़ते पेट के साथ” जो भी पहनलो सब छोटा लगता है।
कोशल्या जी बोली “बहू वो तुम अपने मायके से जो पिलाज़ो - कुर्ती लाई थी उसमें सिलाई लगा ली क्या ” ?
बहू ने धीमे स्वर में कहा “ जी नहीं माजी ”।
तो क्यों ना तुम वो सेट रति को देदो उस पर खूब जचेगा, बहू ने फिर धीमे स्वर में कहा “पर माजी” पर-बर कुछ नहीं ननद आई है देदो ऐसे बख्त पर क्या हिचकिचाना और *वैसे भी ऐसे कपड़े तो बेटियों पर ही अच्छे लगते है बहुओं पर नहीं* कोशल्या जी के यह शब्द उनकी बहू को ऐसे चुभे की उसका सीना छलनी छलनी हो गया । और उसने अपने सभी सूट व ड्रेसेस अपनी ननद रति को दे दिए।
समय बीतता गया और वो दिन आया जिस दिन रति को प्रसव पीड़ा शुरू हो गई और उसने एक सुंदर बच्ची को जन्म दिया , इसी के साथ रति के ससुराल जाने का दिन आ गया और रति खुशी खुशी अपने ससुराल चली गई। और अब रति की बिटिया अब एक महीने की हो गई थी और उसकी ननद भी वहा आई थी है।
भाभी “यह पिलाज़ों कुर्ती तो बहुत सुंदर है " रति की ननद ने कहा ,तो क्या हुआ रति इसे अपनी ननद को देदो “रति की सासू मां ने कहा”। तो अब रति ने चुप चाप वो सेट अपनी ननद को दे दिया।
और आज रति को याद आया की कैसे वो अपनी भाभी की खुशी मारकर वो सेट लाई थी और उसकी भाभी को कैसा लगा होगा। तभी रति ने अपनी मां को फ़ोन किया और समझाया की मां, “भाभी भी किसी घर की बेटी है” और आपको भी मुझमें और भाभी में कोई भेद भाव नही करना चाहिए।
अब कोशल्या जी को यह बात इस तरह समझ आई की वह अगले ही दिन अपनी बहु के लिए नई पिलाजो-कुर्ती का सेट लाई।
-अंजू वैश्य
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