साहित्य चक्र

06 June 2021

कोरोना काल : अस्पताल की डायरी- 1


        


          20 अप्रैल 2021 को स्वास्थ्य का पहिये ने अचानक लड़खड़ा कर दो गज जमीन पकड़ ली । परिजनों ने भागदौड़ की 2 घंटे तक अथक प्रयत्न करने के बाद एक अस्पताल में जगह मिली लगा कुछ राहत होगी । लेकिन वहां की औपचारिकताओं  के बीच 2 घंटे के  जीवन पटरी पटरी चल रहा था और मौत किनारे किनारे खड़ी थी । सांसें उखड़ रही थी लग रहा था कोई सांसों की डोर खींच रहा है । 104 डिग्री बुखार, बदन भट्टी बना हुआ सिर के परखच्चे उड़े जा रहे थे सारा हौसला दुम और आवाज समेट कर दुबका हुआ था साथ । खड़े डा. धैर्य और मनु भतीजों को  मैं अपनी फीकी मुस्कुराहट से हौसला देने की असफल कोशिश कर रहा था । डॉक्टरों की मुसीबत यह थी कि वे पहले से ही आपातकालीन वार्ड में लोगों का परीक्षण करने के बाद बेड खाली करने पर मेरे जांच पड़ताल करने की प्रतीक्षा में थे । उस समय मुझे उन पर जरा भी गुस्से का सवाल ही नहीं था 2 घंटे बाद मेरा नंबर आया सबसे पहले मुझे 2 लिटर ऑक्सीजन देखकर स्थिर करने की कोशिश की गई । हालांकि की मेरा ऑक्सीजन लेवल पहले से ही 92 के आसपास चल रहा था फिर वही औपचारिकताएं और 1 घंटे तक फाइल बनती रही तब जाकर एक कमरा आवंटित हुआ । इसी बीच आपात वार्ड में दो पेशेंट्स की सांसें उख़ड़ने लगी थी डाक्टरों के हाथ पां फूल रहे थे । जोर जोर से बतियाते हुए कह रहे थे कोई वेंटिलेटर खाली नहीं है वे आधे घंटे  तक आपात ऊपाय करते रहे तभी एक पेशेंट के लिए वेंटिलेटर हो गया और एक ने वहीं बैड पर अन्तिम सांस लेकर निस्तेज हो गया । मुझ सहित सभी पेशेंट संवेनशून्य होकर  जड़वत हो चुके थे ।  केवल एक साथ वाली महिला की धीमी सिसकियों से जीवन बौध सुनाई दे रहा था । वहाँ जो हो रहा था उसमें भी डाक्टर यन्त्रवत शेष मरीजों को सम्भालनें में जुटे रहे नजीजन मेरे लिए भी एक ह्वील चेयर तैनात की गई और मुझे तत्काल एक प्राइवेट रूम में शिफ्ट करने के आदेश जारी हुऐ ।

     पहले एक कमरे शिफ्टिंग फिर कुछ ही देर में दूसरे कमरें लेजाकर बैड पर स्थापित कर दिया गचा । चैतन्यता और अचेतना के मध्य संषर्घ जारी था । परिजन कमरे की दहलीज से लौट चुके थे ।कोई आधा घन्टे की प्रतीक्षा के बाद डॉक्टर और नर्सिंग असिस्टेंट उपस्थित हुए डॉक्टर ने पूछा समस्या क्या है स्थिति बताइए । लड़खड़ाती जुबान और टूटे हौसले को जोड़कर पूरा वर्णन सुना डाला । फिर डॉक्टर  महाशय ने 1 घंटे का समय लगा दिया । अन्त  में रात 12:30 बजे 2 इंजेक्शन लगाए  तब जाकर कहीं एक डेढ़ घंटे बाद धीमे-धीमे बदन का ताप ममने लगा । पूर्ववर्ती 3 दिन से आंखों में क्यों नींद नदारद थी धीर से उसी ने आकर थपकी दी ।  आधी अधूरी नींद के साथ सवेरे 6:00 बजे नर्सिंग स्टार में संभाला फिर शुरू हुई दवाओं की लंबी लिस्ट पर एक्सरसाइज । तकरीबन 10-12 गोली एक साथ दिन में तीन बार अलग-अलग समय पर दी जाने लगी दिन में तीन तीनबार इन्जेक्शन लेकिन बुखार भी जिद्दी कबड्डी खिलाड़ी की तरह खड़ा हुआ था जैसे ही प्रतिरोधक वार होता वह होले लौट जाता और ज्योंही  दवाओं का प्रभाव कम होता वह पूरे दलबल के साथ वापस आकर भिड़ जाता । इस बीच अस्पताल में लगातार जांच होती रही और दिन में दो दो बार अलग-अलग खून के सैंपल लिए जाते रहे  कोविड-19 का रिजल्ट तो पहले ही पॉजिटिव था सीआरपी बढ़ा हुआ आया और 110 के नजदीक पकड़ में आया डॉक्टरों को समझ में आ गया माजरा क्या है लेकिन मजा देखिए पां दिन तक डॉक्टर अपने ही तैयार प्रिसक्रिप्शन पर चलते रहे और रेमेडीसियर इंजेक्शन के लिए तैयार नहीं हुए  ये बाद में पता चला कि वे मेरे हिस्से की डोज कहीं और खपा चुके थे। इस बीच में ऑक्सीजन मास्क लग जा रहा वस्तुतः सांसें उखड़ने लगी थी और बात करने में भी कठिनाई हो रही थी इस दरमियान विचारों और ख्यालों के की बोर्ड ने मस्तिष्क के लैपटॉप पर अनंत संभावनाओं , विचारों, उपेक्षाओं,  अभावों और जीवन की कमतरियों को पनपने के लिए जमीन खोद डाली। जैसे तैसे यह समय गुजरता रहा लेकिन शरीर की रोग निवारण स्थिति में कोई सुधार नहीं था बहुधा भोजन की थाली जिंदा रहने का उपाय जैसे लगती थी जीभ स्वाद गंध सभी कुछ अपना रास्ता भूल चुके थे ।


     अस्पताल की तीसरी रात । भयानक तपते बदन के साथ आंखें नींद से शून्य हो चुकी थी रात में सपाट दीवारों वाला कमरा और कमरे में अनामंत्रित हजारों मच्छर न जाने कहां से आकर मेरा ब्लड सैंपल लेने के लिए टूट पड़े । एसी चलाया तो कंपकंपी छूट गई । कम्ब ओडा तो पसीने की नदियाँ बहने लगी । हटाते ही मच्छर चूंसने को टूट पड़ते । बैठे,खड़े,लेटे कैसे भी चैन नहीं । रात 12.30 बजे । कमरे के बाहर लगे लाउडस्पीकर पर पहली घोषणा गूंजी । वार्ड नं. 27 बैड नं. 12 पेशेन्ट की बोडी हटाइए , फिर तो रातभर में पांच छ: बार ऐसे ही मारक समाचारों से रूबरू होता रहा ।घबराहट में एक दो बार नर्सिंग स्टाफ को बुलाने के लिए बैल बजाई पर कोई नहीं आया । इसी बीच हर दस पन्द्रह मिनट में यूरीन पास होने लगा रातभर में लगभग पच्चीस तीस बार यह क्रम चलता रहा । उधर डैड बाडी उठाने वालों की खूली और खूनी लूट की गूंज भी सुनाई बीच बीच में हथौड़े मार रही थी । पांच हजार की निर्धारित दर केवल दीवार की शोभा के लिए थी बीस से पच्चीस हजार में खूलेआम सौदे होते रहे और दिवंगत आत्माएँ ऐसे वहां से विदा लेती रही ।


     सवेरे वही डाक्टरों का रटारटाया सवाल कैसे हैं ? उबलते गुस्से को गटक कर रातभर का वाकिया सुनाया । फिर एक दो दवाओं इन्जेक्शनों में बदलाव । दिन में थोड़ा आराम मिला शाम होते होते बदन फिर भट्टी सा सुलग उठा फिर से वहीं इन्जेक्शन और अब की बार थोड़ी लम्बी राहत । इस बीच मैं ने अपने स्तरपर आल आउट का इन्तजाम कराया । तब अस्पताल की चौथी रात में निद्रादेवी आने को तैयार हुई लेकिन रातभर बीच बीच में यमलोक की काल्स सुनसुन कर चमक कर बैठा होता रहा । फिर खुद को समझाया पगले सो जा अभी तुझे नहीं बुलाया।

निरन्तर जारी....

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