साहित्य चक्र

06 June 2021

कोरोना काल : अस्पताल की डायरी - 4


        

इधर बार बार के टोयलेट के आवागमन ने हाथ में लगे कनोला यानी इन्टर वैनियस इन्जेक्सन लगाने का डाक्टरों ने जो परमानेंट जुगाड़ हाथ के पंजे की नशों में ठूंसा था वो यकायक उखड़़कर बाथ रूम में जा गिरा । मैं कुछ समझ पाता तब तब मैं अपने ही खून से नहा चुका था पूरा बाथ रूम मेरे अपने खून से सन गया । कनोला के हट जाने से नश में एक मोटे से झेद से अनवरत खून की धार बहने लगी । बाथ रूम में सहायता की कोई आशा नहीं थी । बाहर भी कौन निहाल कर रहा था खैर जैसे तैसे साथ साफ किए और बाथरूम से बाहर निकला । कमरा भी जगह जगह खून के बिखर ने से चिकत्थेदार हो चुका था । अपने रक्त से स्नान देवताओं और राक्षसों दोनों ने किए हैं ।लेकिन यह स्नान उनकी आरधना और साधना का अंग था । रावण ने दस बार अपने शीश को धड़ से अलग किया और स्वयं के रक्त से ही अपना अभिषेक किया था । भगवान विष्णु ने देवाधिदेव महादेव की प्रसन्नता के लिए सौ कमल चढाने का संकल्प लिया और जब एक कम पड़ गया तो अपनी दाहिनी आंख महादेव को समर्पित कर रक्त स्नान करडाला । उसी समय रावण दसानन हो गया और विष्णु कमल नयन । मतल़ब आपके रक्त बहने में आपका संकल्प क्या है यह महत्वपूर्ण है ।

  यूं तो आज जिसत रह मेरे देश की धरती मांअपनी ही संतानों के रक्त से दहला उठी है वह न तो जनता की साधना है और न ही कोई पवित्र भावना का हिस्सा । लालच, लापरवाही और लूट की भेंट चढ रहा है हमारा लहू । मेरा रक्त भी इसी बेरहमी के समर में खेत हुआ समझें ।

           जल्दी से बाहर निकलकर सहायता की याचना की  फिर नर्स दौड़ी आई। कोटन लगाकर देरतक जोर से दबाए रखा थोड़ी देर में बहना बन्द हो गया । फिर सबकुछ धुला धुलाया गया चादर बदली गई शाम को नए सिरे कनोला लगा । दस बारह दिन में चारपांच बार बदला गया मतलब शरीर लगातार छलनी होता रहा । अब जरा यह समझ लें कि कनोला बार बार क्यूं बदला । दरसल कनोला को रोकने के लिए जो गम लगी स्टिप्स होती हैं वे इतनी धटिया थी कि चार छ:धन्टे में अपनी पकड़ छोड़ देती थी और एक दो दिन में ढीली होकर लटकने लगती थी । हालांकि अब मैं सावधान था इसलिए बराबर ध्यान दिलाता रहा और नतीजन वे नई सुई चुभोकर अपनी ड्यूटी निभाते रहे । जीवन रक्षक  रेमेडिसयरर इंजेक्शन लगने शुरू हुए पहले दिन  2 इंजेक्शन लगे । फिर धीरे-धीरे 3 दिन में 11 और इंजेक्शन लगा और इस तरह कुल 4 दिन में 5  इंजेक्शन लग गए तबीयत में सुधार होने लगा था बुखार नहीं रहा सांस लेने में भी कठिनाई कम होने लगी ।

           डाक्टर की  देख रेख में जिस दिन पांचवा रेमेडिसयर इंजेक्शन लग रहा था उसी समय मेरे ही कमरे के गेट पर एक महिला डॉक्टर के पीछे पीछे रोती गिड़गिड़ती चली आई मैं कुछ माजरा समझता इससे पहले ही उसने डॉक्टर के पैर पकड़ लिए और हाथ जोड़कर रोते हुए  कहा कृपया मेरे पति को बचा लीजिए पास वाले कमरे में वह जीवन मृत्यु का संघर्ष कर रहे हैं और उनके लिए किसी भी तरह आप रेमेडिसयर इंजेक्शन की व्यवस्था करवाएं । इतना कहकर उसने अपने हाथ के कंगन खोलकर डॉक्टर के सामने रखते हुए कहा इन्हें बेचकर जो पैसा मिले उससे आप इंजेक्शन मंगवा ले चाहे यह कितने ही महंगे क्यों ना हों ।मैं अपने आप को रोक नहीं सका और मेरी आंखों में धार धार पानी बहने लगा । डॉक्टर ने किसी तरह महिला से पीछा छुड़ाया और कहा कि आप कमरे में पहुंचें मैं देखता हूं क्या हो सकता है । मेरे कमरे में डाक्टर के पास खड़ा कंपाउंडर मेरे  नजदीक आया और मुझे कनोला मैं इंजेक्शन लगाने के लिए तैयार होने को कहा । मैंने डॉक्टर से प्रार्थना की , मुझे 4 रेमेडिसयर के इंजेक्शन लग चुके हैं और अब मैं पहले से बेहतर महसूस कर रहा हूं । मेरा आग्रह है कि अब आप बचे हुए 2 इंजेक्शन इस महिला के पति को लगाकर उसके जीवन की रक्षा करें ।डॉक्टर मुझे भौंचक्की नजरों से बहुत सा शक घोलकर देखने लगा । मैंने बहुत गंभीरता पूर्वक अपनी बात उन्हें दोराई । डॉक्टर ने कहा इसके लिए आपको लिख कर देना पड़ेगा।  मेरे पास पैन रखा हुआ था मैंने तत्काल डॉक्टर से कहा आप कागज मंगाइए मैं साइन करने को तैयार हूँ । डॉक्टर मुझे बिना कुछ कहे चलते चलते  कंपाउंडर से इतना ही कहा इंजेक्शन लगा कर तुरंत वापस लौट आओ । मै ने बहुत अनमने और भारी मन से इंजेक्शन लगवा लिया । आज जब छठा इन्जेक्शन लगाने कम्पाउंडर आया तो पता चला  उस महिला ने अपने पति के लिए बाहर कहीं से भारी दाम चुका कर रेमेडिसयर की व्यवस्था कर ली है ।

निरंतर जारी....


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