आज अनलॉक का पहला दिन था।कोरोना मरीजों की संख्या एक अंक तक सीमित हो गई थी। कई संस्थाओं द्वारा कोरोना वारियर्स का सम्मान किया गया ।इसमें फील्ड पर काम करने वाले कर्मचारी एवं स्वास्थ्य महकमें के लोग शामिल थे। कुछ सम्मान वास्तव में सम्मान की भावनाओ के साथ किये जाते हैं तो कुछ नाम की छपास के लिए। जो भी हो कोरोना वारियर्स सम्मान कार्यक्रम में चौथे स्तंभ कहे जाने वाले मीडिया तंत्र के प्रतिनिधियों का सम्मान भी हुआ। कार्यक्रम में चर्चा रही मीडिया के लोगों ने कोरोना कर्फ्यू लागू कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह बात चौथे स्तंभ को अभिनंदित करने वाली थी। इस सबसे एक मीडियाकर्मी का मन यह सोचकर कचोट रहा था कि क्या उसने पत्रकारिता के साथ पूरा न्याय किया है ? ....और वह इस सम्मान का हकदार है क्या ? बात ऐंसी है, लॉक डाउन में उस पत्रकार ने परिवार की जरूरतों को भी पूरा किया था।
हुआ यूं कि कोरोना महामारी के दौरान सामान्यतः जनता कर्फ्यू के नाम पर बाजार और सभी प्रकार के प्रतिष्ठान बंद थे। पुलिस और प्रशासन की सख्ती के चलते बाजार के दुकानदार दुकान खोलकर सामान नहीं दे पा रहे थे। आउट साइड एवं मोहल्ले की छोटी मोटी दुकानों से चोरी छिपे जरूरतमन्दों को सामान मिल रहा था। कुछ दिन के बाद किराना दुकानों को नियत समय के लिए होमडीलेवरी करने की अनुमति दे दी गई थी। ऐंसा देखकर कपड़ा एवं अन्य सामग्री वाले भी आधी शटर गिराकर सामान बेचने लगे।
नगर में लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाने वाला मीडिया तंत्र सक्रिय था। सो दूसरे दिन अखवारों और सोशल मीडिया पर दुकान की आधी खुली शटर की फ़ोटो के साथ खबर प्रकाशित हो गई। जिसमें लिखा था कोरोना कर्फ्यू के बाद भी आधी शटर खोलकर बेंची जा रही है सामग्री,लोग घरों से भी चला रहे हैं दुकानें। इस खबर के प्रकाशित होते ही प्रशासन ने सख्ती बढ़ा दी और बाजार क्षेत्र की कई दुकानों को सील कर दिया गया। मीडिया तंत्र खबर का असर देखकर खुश था।
एक शाम पत्रकार अपने घर पहुंचते हैं, पत्नी घर मे प्रवेश करते ही कहती है,देखना अपना यश कुरकुरे और टॉफी के लिए मचल रहा है। पत्रकार का यश नाम का 3 वर्ष का बेटा था। पत्रकार ने समझाते हुए कहा कुरकुरे और टॉफी इस समय कहां से मिलेगी । पत्नी ने कहा तीन बजे से रो रहा है, उसके जिद करने पर पिटाई भी कर चुकीं हूं, पर मान नहीं रहा । कुछ ठहरकर पत्नी आगे बोली सुनो जी, आप तो पत्रकार हो ।
आपको तो कोई भी दुकानदार सामान दे देगा। पत्नी की बात सुन पत्रकार ने झल्लाते हुए कहा हम दुकान बंद करवा रहें हैं और तुम खुलवाकर सामान लाने की बात कर रही हो। पत्नी ने भी गुस्से में कह डाला आप पत्रकार अकेले नहीं, एक बेटे के बाप भी हो। पत्रकार ने खुद बेटे यश को समझाने का प्रयास किया परन्तु वह रोए जा रहा था। पत्रकार पारिवारिक दायित्व के आगे मजबूर था। पत्रकार ने पड़ोस के एक घर में स्थित दुकान के पास पहुंचकर आवाज लगाई दुकानदार परिचित था, बोला भैया आप ! पत्रकार ने कुरकुरे और टॉफी देने की बात कही दुकानदार अंदर टॉफी लेने चला गया। पत्रकार का मुंह और सिर दुकान की आधी खुली शटर के कारण झुका था, तभी पीछे से आवाज आई दुकान का शटर बंद करो।
पत्रकार ने पीछे मुड़कर देखा ।दो पुलिस वाले मोटर साइकिल पर गश्ती कर रहे थे। पुलिस वालों से पत्रकार की नजर मिली तो वे आगे बढ़ गए। उस दिन पत्रकार को लगा कि बालहठ के सामने चौथे स्तंभ को लज्जित होना पड़ रहा है, परंतु पिता का फर्ज निभाकर पत्रकार ने अपने पारिवारिक दायित्व को पूरा कर दिया था।
राजेश शुक्ला
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