साहित्य चक्र

26 June 2021

मिट्टी के घर




जिंदगी खेल- खेल में ,
मिट्टी के घर बनाती है। 
और दूसरे ही पल ,
गिरते ही,
जिंदगी बदल जाती है ।

जिंदगी  खेल -खेल में ,
मिट्टी के घर बनाती है।

कितनी हसरतों से,
सहेज कर सपनों को,
महलों को धीरे -से थपथपाती है।

नन्ही -सी एक ठेस से,
रेत -सी जिंदगी की
 तस्वींरें बदल जाती है।

जिंदगी खेल- खेल में,
 मिट्टी के घर बनाती है।

हर बार बिखर के,
 फिर से ,
सपने सहेजती है।

जिंदगी के खेल में,
रेत- सी कितनी बार,
बनती और बिगड़ती है।
लेकिन यह खेल,
 फिर भी...कहां छोड़ती है।


                                  प्रीति शर्मा "असीम"


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