साहित्य चक्र

17 June 2021

मेहंदी




हर नारी को भाये मेरा हाथों में रचना
मैं हूँ सुहागन का इक मनभावन गहना

खुशबू जिसकी पियाजी को भायें
कोई कहे मेहंदी कोई कहे मुझको हिना

हरी हरी पाती मेरी,जब पौधों पर है पनपती
लगती बड़ी सुंदर,खूब इठलाती

जानती है अब उनको पौधे से है बिछड़ना
मिलकर मेरी पत्तियों को,घुटना और पिसना

पर फिर भी मैं खुश हूँ नया रूप पाकर
क्योंकि इसी रूप में सजूंगी किसी के हांथों पर

मेरे रंग से नाता पिया जी के प्रेम का सब कहते
जिंतनी मेरी रंगत ,पिया प्रेम उतना करते

तब ही तो हर नारी ,करती मनुहार मुझसे
कहती ओ प्यारी मेहंदी रंगना खूब लाल होके

तेरी ख़ुशी सखी मुझको भी भायें
जब गहरा रंग मेरा तेरी  हथेलियों पे आये

                                 नंदिनी लहेजा


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