सूखे का प्रकोप कहीं
चिलचिलाती धूप कहीं
पानी नहीं दिखता
दूर दूर तक।
सुलगते मन
जलते बदन
मांगते मुक्ति
जीवन से।
कहीं बाढ़ का तांडव
हर तरफ जल ही जल
बना हर पल
प्रलय का डर
डूबते जीवन
अनचाहे ही।
बिन मांगे जीवन कहीं
मांगने पर मौत भी नहीं।
कैसा निर्णय ?
रिमझिम फुहार कहीं पर
सुहाती धूप भी।
मौत से बेखबर
जीवन ही जीवन।
ऐसा अंतर ?
तुम कह लाते सर्वज्ञ
तो लेते क्यों नही
किसी मन की ?
नचाते क्यों
केवल कुछ को
अपनी माया से।
तुमसे प्रश्न ?
अर्चना त्यागी
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