हे नारीशक्ति
ममता व भक्ति
भावों की तू है
स्वतंत्र अभिव्यक्ति
सृष्टि का आधार तू
कल्पना का सार तू
आदि न तेरा अंत है
प्रकाशमय अनंत है
दिव्यता में दिव्य है
रूप तेरा ये भव्य है
करूणा की तू है छवि
प्रणम्य करे उगता रवि
चांद की तू शीतलता
सहज तू है सरलता
प्रेम की तू सागर सी
अमृत की गागर सी
श्याम की है बांसुरी
सृष्टि टिकी वो धुरी
राम की तू जानकी
जननी तू विज्ञान की
मोहन की राधिका
मीरा सी साधिका
शिव की तू शक्ति है
भावना अनुरक्ति है
काव्य की भावना
त्याग और साधना
क्रोध में है आग तू
बसंत का अनुराग तू
महकता है जिससे जग
फूल की तू कोमलता
सहज तू है सरलता
कालिका तू चंडिका
काल रूप प्रचंडिका
भवानी तू ज्वाल तू
असुरों का काल तू
जननी में ममता
धरा की तू क्षमता
पिता की है तू अस्मिता
सभी भावों की तू पता
गंग तू और उमंग तू
इंद्र धनुष के रंग तू
बहन का दुलार तू
पति का है प्यार तू
भाई की तू जान है
सम्मान स्वाभिमान है
धरती तू आकाश तू
विश्वास और आश तू
गीता का तू सार है
एक रूप में हजार है
रामायण की तू चौपाई
ईश्वर की भी तू है माई
पुरूषों से तू नहीं है कम
पलक झपकते जग खत्म
पर्वत की तू पीर है
गंगा की तू नीर है
अनुसुइया का सतीत्व तू
माँ का है ममत्व तू
कौशिकी का तप है
वेदों के मंत्र और जप है
आरती शर्मा
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