साहित्य चक्र

05 June 2021

चिरैया की व्यथा


मेरी इक छत की मुंडेर से,बोले एक चिरैय्या 
सुन भैय्या ,सुन भैया  सुन भैया ।




पानी नही बरसाता बादल,मैं प्यासी की प्यासी,
भूखे प्यासे बच्चे रहते ,घर घर घिरी उदासी। 
खूंटे पर छटपटा रही है प्यासी गैय्या मैय्या।
मेरी इक छत की ------------------------------


दाना नहीं उगा खेतों में, मैं क्या चुगने जाऊं,?
अपने प्यारे चूजों को मैं, क्या भोजन करवाऊँ ।
डाली सूख गई पेड़ों की ,नहीं नीड़ पर छइया।
मेरी इक छत की ------------------------------

   काटे सारे जंगल तूने छाया कहाँ रहेगी ?
 रोके से ना रुके हवाएं ,नदियाँ कहाँ बहेंगीं? 
आँधी चले आग बरसती न डोले पुरवइया ।
मेरी इक छत की ------------------------------

आओ पेड़ लगाएं मिलकर, फिर छाए हरियाली,
हरी भरी धरती माता हो ,हो चहुंदिश खुशहाली।
बागों में कलियाँ लहरायें, चले विकास का पहिया
 मेरी इक छत की ------------------------------ ।



                          मुल्क मंजरी भगवत पटेल


No comments:

Post a Comment