साहित्य चक्र

17 June 2021

* जिंदगी है,सफ़र है, ठिकाना नहीं *



हम व्यस्त हुए अपने जिंदगी में
यूं कि अपने को समझना भूल गए

जिंदगी को बेहतर बनाने, तरीके ढूंढते रहे
जिंदगी भर यादें साजोते राहें

जिंदगी एक जिद है,जिसे ठान के जीतें है

जिंदगी के सफ़र में,आगे बढ़ने के दौर में,जिंदगी हार सी गई है!

जिंदगी मनगढ़ंत यादों का सफर है जिसे तय करना है

जिंदगी में सफ़र है लेकिन ठिकाने का पता नहीं

जिंदगी में,ठिकाना किराये का है,सफ़र रूकने का नाम

सफ़र है जिंदगी की जो कट जायेगी
सफ़र है जिंदगी की जो बंट जायेगी

सफ़र है जिंदगी की जो छट जायेगी
सफ़र है जिंदगी की जो रूक जायेगी

सफ़र है जिंदगी, जो गुम हो जायेगी

सफ़र है जिंदगी,जो कैद हो जायेगी

हम तो यूं ही संभालते रहे, जिंदगी को पता ही नहीं चला, 
कब हम जिंदगी के सफ़र में रूक से गये!

गौरतलब थी की जिंदगी थी,
मैं था और सुलझाने का मौका ना मिला!

हम अपने सफ़र को सफल करते हैं, 
मगर जिंदगी की कसर अभी बाकी मिला!

चाहते रहे जिंदगी को जिंदगी भर,
मगर जिंदगी का असर अभी बाकी मिला!
चाहा ना था, जैसा वैसा मुझे साकी मिला


                                                     आशीष द्विवेदी


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