सब्रकर तू बंदे यह दिन गुजर जाएंगे,
सुख के दिवस जीवन में फिर से आएंगे।
छंटेगा कोहरा अतिशय भय व गमों का
हर चेहरा फिर खुशी से मुस्कुराएगा।
है मचा जो कोरोना का महाआतंक,
सूझबूझ से हम सभी इसे भगाएंगे।
सूने पड़े कब से बाजार गांव शहर के
फिर से अपनी धमाचौकड़ी मचाएंगे।
सूने पड़े हैं विद्यालय बहुत दिनों से,
अब बच्चे वहां फिर से शोर मचाएंगे।
लॉकडाउन में घर में बंद बाबा दादी,
सुबह-सुबह उपवन में सैर को जाएंगे।
सब्र कर तू बंदे यह दिन गुजर जाएंगे,
सुख के दिवस जीवन में फिर से आएंगे।
ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम
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