साहित्य चक्र

19 June 2021

कैप्टेन की सवारी...





                     आखिर रपटते गिरते ये 2021 ख़त्म होने को है. नयी साल की रात दरवाजे पे है। जैसलमेर के धोरे दुल्हन जैसे सजे हुए मानो अपनी बारात के इंतज़ार में है। दूर दूर तक जहाँ देखो कैम्पिंग साइट्स इस थार में डंडाथोर के जैसे उग आये हैं। जवान बूढ़े सब उत्साहित नजर आते हैं। ये कमाई का समय है। रेगिस्तान में बारिश और पैसों के छींटे कभी कबार ही गिरते हैं। इस बार तो कोरोना सब धंधो पर वजन जमाकर बैठा है। ठंडी हवा तो ऐसी है कि हड्डी काँप जाये। दूर से घूमने आये खानाबदोशों ने कभी इतनी धूल एक साथ नहीं देखी। ये उनके लिए वैसी ही है जैसे राजस्थान के लोगों के लिए बर्फ. खेलने का साधन। फिर सोशल मीडिया पर भी तो दिखाना था कि हमने वहां कैसे धूल उड़ाई। एक ने अपने बच्चे को लुढका दिया टीले से, धूल आँखों में घुस गयी. बच्चा रोने लगा तो एक मोहतरमा ने ये बोलके चुप करवाया कि देखो बेटा कितना अच्छा विडियो बना है, स्लो मोशन वाली मिट्टी का. बच्चा खुश. सनसेट होने को था। सामने से ऊँटो बकरियों के रेवड़ आ रहे थे। साथ में लाये वो घंटियों का संगीत और ग्वालों के टुर्र टुर्र की खरखराहट वाली आवाज। ये सब के बीच में रिसोर्ट की तरफ बढ़ रहा था। ये सब बॉलीवुड की कोई फिल्म जैसे था।




       हल्की शाम हुयी। आग जलाई गयी। भयंकर ठण्ड में लपटों के चुम्बन से गरम हुयी हवा शरीर पर मसाज करने लगी। मांगणयार ( थार की लोकल गवेया जाति ) अपने जाजम पर बिराजे। दुहे कहे गए फिर गाना शुरू हुआ। केसरिया बालम आओ नि सा... बहुत उमंग का माहौल चारो तरफ सुगन्धित हो उठा। तीन चार फोक सोंग्स सुनने के बाद मैं उठकर थोडा साइड में चला गया। शाम को रोज घर पे कॉल करने की परम्परा निभाते हुए मैं माँ को यहाँ के सुन्दर माहौल के बारे मैं बता रहा था कि अचानक एक आवाज कान में पड़ी। बहुत मधुर. ऐसा लगा जैसे दर्द खुद बाहर आके बहने लगा हो। इस आवाज में दो चीज़े उत्सुकता भरने वाली थी। पहली कि ये आवाज बूढी नहीं थी। ये बोली किशोर अवस्था से तरुणता की और बढ़ते किसी लड़के की थी। ये थार का अपना स्वर था। दूसरी नयी चीज़ उस गाने के बोल… तेरे फूलां दी माला… ओ सिकंदर… ये गाना एलेग्जेंडर द ग्रेट के बारे में था। पर ये गाना यहाँ कैसे पहुंचा ? ये गाने वाला उसके बारे में क्यों गा रहा है ? ये सब सवाल एकाएक उमड़ पड़े। मैं माँ को बाद में बात करने का आश्वासन देके गाना सुनने के लिए दौड़ पड़ा।


       


      सामने सांवले रंग का लड़का, मूंछे बस उग जाने के इंतज़ार में थी। आँखे बड़ी , गोल. बाल जल्दबाजी में भूलवश ज्यादा डल चुके तेल के कारण चमक रहे थे। सफ़ेद कुर्ता रेत से थोडा मैला हो गया था। उसने स्वर लिया ..वाह. वाह.. मैं शांति से एकटक उसको सुनता रहा। मन मांग रहा था कि ये गाना कभी ख़तम ही न हो। इतने में दो तीन जवान शाम की मस्ती में मस्त हुए खड़े हुए। सर्पिल पथ पर चलते हुए वो मंच तक पहुंचे. बच्चे के ऊपर कुछ नोट उडाये। लड़का बोला ..खम्मा हुकम...


      

       

ठंडी हवा के झोंके घडी के जैसे चल रहे थे, धीमे धीमे जैसे जैसे समय बीते उस लड़के से मिलने की उत्सुकता बढती जाये। वो ग्रुप में सब बैठे गाये जाये। घंटेक भर इंतज़ार के बाद सब खाने की तरफ बढे। वो लड़का भी प्लेट लेके धोरे पे जमी एक कुर्सी पर प्लेट लेके खाने लगा। मैंने कॉफ़ी लेकर अपनी कुर्सी उसके पास लगा दी। पहले तो वो असहज हुआ। मैंने मोराटो की हूडी पहन रखी थी जिससे मैं थोडा डूड टाइप दिख रहा था, इसलिए मैं उसे दोस्त जैसे ही लगा और वो सहज हुआ।




“गाना काफी अच्छा गा लेते हो, कहाँ से सीखा ?” मैंने मुस्कुराते हुए पूछा। “खानदानी पेशा है भैया, गाते हुए ही पैदा होते है हम में ” तडाक से उत्तर आया।

“नाम ?”  “हुकमा”


“ये सिकंदर के बारे में यहाँ क्यों गाते हो ? इसका क्या मतलब है और उसके बारे में क्या जानते हो ?” मैंने गंभीर होकर पूछा।


“भैया हमारे बड़ेरे ये गाने गाते आये हैं, ये कहीं लिखे हुए नहीं है। एक से दूसरी पीढ़ी सीखती है और गाती है। मेरे बाबा ने बताया था कि सिकंदर पश्चिम के रास्ते भारत आया था तब से ही ये गाना गाते आ रहे है भैया” लड़के ने भोलेपन से उत्तर दिया।



मैं ये जवाब पाकर चकित रह गया। बाद में थोड़ी वेब रिसर्च से पता लगा कि सच में सिकंदर करीब २३०० साल पहले उत्तर पश्चिम भारत यानि सिंध-पंजाब-राजस्थान की सीमा से भारत आया था। जिसके कुछ हिस्से अब पाकिस्तान में हैं। इतने सालों से जिन्दा बचा हुआ ये गाना फोक म्यूजिक की परिभाषा है। कला की जीवटता का खरा सबूत। ये गाने के पहली बार गाये जाने के बाद कुषाण, मौर्य, राजपूत, मुग़ल मराठे और कई अन्य साम्राज्य बने और बिगड़ गए, पर उम्र देखो संगीत की, ये आज भी उन मीठे गलों से नीचे नहीं उतरा।




मैं ये सब सोच रहा था इतने में हुकमा वहां से रवाना हुआ। मुझसे दोस्ती जैसी हो गयी इतनी सी देर में। जाते जाते बोला “भैया, नयी साल की सुबह मेरे कैप्टेन पे घूमोगे क्या ? ”

मैंने आश्चर्य से उसकी तरफ देखा, “ कैप्टेन ? ”

“मेरे ऊँट का नाम है भैया, पूरे ३०० रुपये लूँगा। बोलो चलते हो ? ”

मैंने हाँ बोल के उसे विदा किया “सुबह मिलते है दोस्त” 



हुकमा के जाने के बाद मैं टेंट से बाहर देखता रहा आधी रात तक। चारो तरफ फैली इस कोरोना की तबाही ने सब कितना बदल दिया। संगीत के बहुत करीब पाकर मैं विचार करने लगा कैसा होता होगा हुकमा होना और वैसे गाना। सुबह के इंतज़ार में पता नहीं कब नींद लग गयी। सुबह सुबह सूरज की बढती गर्मी और धूल के झोंको से मेरी नींद खुली। बाहर गेट के सामने ऊंट खड़ा था। आँखों पे पानी डाला इतने में हुकमा कैप्टेन के ब्रेकफास्ट के लिए घास ले आया।



“चले भैया ?  हैप्पी न्यू ईयर” उसने जोर से बोला।

“हैप्पी न्यू ईयर हाँ बस थोड़ी देर में निकलते हैं ”  



मैं बोला...


हल्का फुल्का खाके, नहा धोके हम सवार हुए रेगिस्तान के जहाज पर। ऊंट पर बैठना भी एक कला है। आप संभल कर नहीं बैठे तो ओंधे मुंह गिरके धूल चख सकते हो। ऊंट दो बार जर्क मारके खड़ा होता है, पहले जर्क में आदमी संभला रहता है और ढीला हो जाता है। तभी दूसरा जर्क आता है जिसमें संभलना जरुरी है। खैर मुझे इसका अनुभव था इसलिए बिना किसी परेशानी के हमने फ्लाइट पकड़ ली। हुकमा ने कैप्टेन का पूरा श्रृंगार करा हुआ था। सुन्दर गोरबंद सजाया हुआ, बाजूबंद जैसे लटकती लूमें और चतुराई से बंधे हुए घूगरे छनंण छनंण बज रहे थे।



नयी बियाही दुल्हन के चलने सा सुंदर संगीत, हुकमा ने ऊंट हांका धोरो की तरफ जहाँ तलहटी में उसके सगे सम्बन्धी रहते थे। गार से लिपे हुए सुन्दर घर और उनपे बने हुए गेरू के रंग बिरंगे मांडने। हाँ क्लास लगती थी और बाहर खुला था सब, जहाँ बच्चे कूद फांद रहे थे। इतना सुंदूर धोरो के बीच स्कूल देखना मात्र ही सुकून देने वाला था।


 

“हुकमा, तू स्कूल नहीं जाता क्या ?” मैंने उत्सुकता से पूछा।

“आई गो स्कूल, आई स्पीक इंग्लिश। ऐसे ही समझ रखा है क्या ?” हुकमा ने हँसते हुए उत्तर दिया।


मैंने आश्चर्य से उसकी और देखा। “फिर आज स्कूल क्यों नहीं गया ?”

“अभी कमाई को टैम है बाबू जी, 2 साल में कुछ नहीं कमाया”

“कौन सी कक्षा में हो तुम ?”

“अभी 12 वीं में आ गये है”


हम बात कर रहे थे कि अचानक झटका लगा एक .हुकमा ने ऊंट का रस्सा छोड़ रखा था, मौका पाया और कैप्टेन तो भाई भागने लगा। पहले तो मैं डर गया फिर मज़ा आने लगा। चारों तरफ सिर्फ रेत और धोरे थे तो मैंने सोच लिया था कि गिरेंगे तो भी कुछ होना नहीं है और यहाँ कौन ही देख रहा है। कुछ पांच सौ मीटर ये रेस चली फिर एक बूढ़े बाबा भी किसी को ऊँट की सवारी करवा रहे थे, उन्होंने रस्सा थाम लिया। हुकमा आगया जब तक कैप्टेन को थोड़ी डांट पड़ी. हम फिर चल पड़े।



“भैया , ये ऊंट का स्वाभाव बच्चे जैसे होता है. इसको चलते फिरते शैतानी करने की सूझती है। इसको मट्टी में भागना पसंद है ”, हुकमा कैप्टेन को पुचकारते हुए बोला।

“ मिटटी के जानवर को मिट्टी तो अच्छी लगेगी ना यार. ”

“ मुझे भी बहुत अच्छी लगती है मट्टी और ये कैप्टेन ”

“ हुकमा मैं पूछ रहा था कि तेरे विषय क्या क्या हैं और क्या क्या पढना अच्छा लगता है ?”

“मुझे तो ये कुछ भी पढना अच्छा नहीं लगता, सिर्फ गाना अच्छा लगता हैं और बजाना। मेरे पास मोरचंग है, इसके अलावा मैं अलगोजे और ढोलक भी बजा लेता हूँ। यहाँ १० वी के बाद इतिहास राजनीती विषय आजाते हैं जो मुझे बिलकुल अच्छे नहीं लगते”

“ तो तुमने संगीत और कला के और विषय क्यों नहीं चुने १० वी के बाद ?”

हुकमा हंसने लगा फिर बोला, “भैया इनकी भी कोई पढाई होती है क्या, स्कूल में तो गाने बजाने वालो को चिड़ाते है।”



ये सुनकर मुझे बहुत अफ़सोस हुआ. ये भोले बच्चे को पता तक नहीं है कि उसके पास कितना टैलेंट हैं। संगीत की भी शिक्षा होती है। थार तक वो शिक्षा अभी पहुँच नहीं पाई है। विज्ञानं की तो बात करने का सवाल ही नहीं है, इसका रिसाव भी धीरे धीरे होगा। ये सब देख कर किसी देश के विकसित होने और विकासशील होने का अंतर मेरे मन में और साफ़ हो गया। साथ मैं थार के इस मीठे मिनख को देख कर दिल बहुत राजी हुआ।



एक पुराना दोहा काफी प्रसिद्ध है जैसलमेर के बारे में वो कुछ इस प्रकार है-

             “ बख्तर कीजे लोहे का , पग कीजे पाषाण

               घोड़ा कीजे काठ का , जद पूगे जैसाण ”


मतलब तुम्हारे पास लोह फौलाद का कवच, पत्थर के पैर और लकड़ी का घोड़ा हो तब ही जैसलमेर पहुँचा जा सकता है, ये इतनी दुर्गम और कठोर भूगोल में बसी जगह है। शायद यही कारण है कि शिक्षा और वेस्टर्न कल्चर अभी इसकी सीमाओं से कोशों दूर है। यही वजह है  कि भीसण गर्मी और धोरों की ओट में वो सिकंदर का गाना आज भी यहाँ उबल रहा है। विकास की आग की लपटे अभी यहाँ उतनी नहीं फैली। दुर्लभ तालाबों में अभी भी थोडा पानी दिखाई पड़ता है। प्रवासी पक्षी अभी भी यहाँ बिना डरे पहुँच जाते हैं और हुकमा उन्ही में से एक विदेसी पक्षी पर बहुत प्यारा गाना गाता है, कुरजां...



विचारों के अंधड़ में घूमते हुए मैंने सवाल किया , “ स्कूल कितना दूर है घर से ?”


“दो स्कूल में जाना पड़ता है, एक स्कूल में अंग्रेजी पढ़ाने के लिए मास्टर नहीं है इसलिए। पर हमें जोर नहीं आता। मेरे आस पास के सब बालक हम ऊँटो के टोलों पर जाते है मस्त मौज करते हुए। स्कूल के उधर नाडी में चरने को छोड़ देते है टोले को. फिर स्कूल ख़तम होने पर बैठ कर वापिस आ जाते है।” हुकमा बोला।



“अंग्रेजी कितनी सीख गए हो ?”

“ पता नहीं, पर अंग्रेजी के सर मुझे अछे लगते हैं। वो मुझसे गाने को बोलते है फिर टॉफ़ी भी देते हैं। उन्होंने एक बार कहानी भी सुनाई थी ऊँट की। कि कैसे ऊंट ओस्ट्रेल्ला देश में टिड्डी बन गए फिर उनको मारना पड़ा था। ये सच है क्या ? वहां के लोग तो बुरे हुए फिर। हमारा तो सब ये ऊँट ही है” , हुकमा उदास होकर बोला।



बचपन में प्रकृति और जानवरों के बहुत करीब होते हैं हम। फिर बिना मंजिल के रस्ते पे भागते भागते जवानी अपने जोर से इन रिश्तों को शिथिल कर देती है। दूर बैठे इस बच्चे को सब जगह के ऊँटो से कितना प्यार है। ये सब बात करते करते हम बहुत दूर आ चुके थे। एक खेजड़ी के पेड़ से ऊँट को बांधके हम छाया मैं बैठे। उसके कंधे पे हाथ रख के मैंने सवाल किया, “हुकमा। बोर्ड परीक्षा आ रही है, उसमे पास होने की पढाई कर रहा है कि नहीं ? ”


“ पिछली बार भी सरकार ने बिना परीक्षा पास किया था, इस बार भी कर देगी। बा ने नया हारमोनियम लिया है मैं तो वो सीखूंगा।”


सफ़ेद बत्तीसी के बीच से भोलापन मुस्कुरा रहा था।




लेखक- दलीप सिंह चौहान





18 comments:

  1. Bhai... Kya khoob likha hai aapne
    Well done.. Aap Aise hi aage likhte rho..

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  2. Anonymous19 June, 2021

    Very nice sir ����

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  3. You're on fire ..����
    Tooo good sir
    💙💙

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  4. Too good sir 👌🏻👌🏻

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  5. बहुत ही खूबसूरत रचना, उम्दा 👏👌

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  6. Waah waah waah♥️♥️

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  7. Very nice. Very beautifully written.

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  8. Super se bhi upper 👌👌
    Keep doing my brother 👊👊

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  9. Bahut accha likha h
    Padhte samay mehsoos hota hai ki puri wartalaap mai khud kahani me jakar sun rha hu 👌

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  10. Awesome bro proud of you bahi

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  11. कहानी के माध्यम से कोरोना काल के परिस्थितिवश उपजी परीक्षा प्रणाली में परिवर्तन और ग्रामीण क्षेत्र की शिक्षा व्यवस्था पर एक गहरी समझ भरा लेख है ये।

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  12. Anonymous20 June, 2021

    Awesome 😘😘

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