साहित्य चक्र

12 June 2021

सम्बन्धों में अपनापन हो




जीवन है इक सफर ,और हम सब इसके राही
चलते जा रहे कर्म को करते ,तृष्णा मन में समाई

यह भी पाना ,वह भी पाना,यह सोच कर भागे जा रहे
छूटते  जा रहे सारे रिश्ते नाते,फिर भी न हम पछ्ता रहे

माना  व्यस्त हुई दिनचर्या ,न अपनों से हम मिल पाते है
दिन बीतते है महीनों में और माह वर्ष है बन जाते है

करके अथक परिश्रम गर पा भी लेंगे हम बहुत कुछ
पर अपने ही संग न होंगे ,फिर क्या करेंगे हम सब कुछ

सच्ची ख़ुशी तब ही मिलेगी  जब कोई बाँटने वाला हो
रिश्ते नाते संगी साथी बस संबंधों में अपनापन हो

 प्र्त्येक पड़ाव में जीवन के,तुझको है संबंधों का साथ मिला
पहले मात-पिता और  भाई बहन,फिर मित्रों का तुझे प्यार मिला

कुछ बनने  की चाहत में जब घर से गए
अपनी दुनिया में हुए मस्त लौट के फिर न गए

कुछ बन भी गए सब पा भी लिया पर ना आएगा मज़ा
एकाकी पन लगने लगता है फिर इक सज़ा

संजोना है प्रेम हर रिश्ते में चाहे वह पास या फिर दूर हो
संगी साथी रिश्ते नाते बस संबंधों में अपनापन हो


                                                         नंदिनी लहेजा


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