साहित्य चक्र

13 June 2021

छिपी हुई सेवा और दिखावे की सेवा - निस्वार्थ सेवा आध्यात्मिक सफलता की कुंजी




र व्यक्ति ने अक्सर यह वाक्य अपने जीवनकाल में अनेक बार सुना होगा कि "हम तो जनता के सेवक है", "मै हमेशा जनता सेवा में तत्पर रहता हूं", "मेरा पूरा जीवन जनसेवा में समर्पित है", "जनता सेवा पहले" और "मेरा अधिकतम समय अब सेवा कार्यों में ही रहता है" इस प्रकार के सैकड़ों वाक्यों व शब्दों से हम अनेक बार जीवन में चिर परिचित हुए होंगे और ऐसे महानुभव व्यक्तियों से हम चिर परिचित होंगे ही जो ऐसे वाक्यांश कहते रहते हैं क्योंकि उनके व्यक्तित्व की पराकाष्ठा उनके मुख से तथा प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के हस्ते हमारे पास पहुंचती है और सुनते हैं, अभी हम अपने आस पास कई कार्य कर्ताओं, समाज सेवियों, सामाजिक संस्थाओं, की सेवाओं की  कोविड-19 में सराहनीय सेवा देख रहे हैं जो तारीफ़ के काबिल हैं और अनेक टीवी चैनलों द्वारा भी ये सेवाएं दिखाई जा रही हैं । हालांकि उस पराकाष्ठा में या उनकी सेवा को प्रत्यक्ष रूप से देखना या जांचना या परखना नहीं चाहते हैं। इस विचार से कि मेरा क्या मतलब? इसमें दो तरह के विचार लोगों के हृदय व मस्तिष्क में आते हैं, कि 1) क्या खूब सेवा कर रहा है! और यह तो सेवादारी व्यक्ति है। 

2) अगर सच्चे हृदय व मन से सेवा कर रहा है तो दिखाने व ढोल नगाड़े पीटकर तथा प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा तथा स्वयं खुद द्वारा बताने और बखान करने की क्या जरूरत है? याने चुपचाप में छिपी हुई सेवा भी तो कर सकते हैं। इसे हम निस्वार्थ सेवा या गुप्तदान की सेवा कह सकते हैं। बस मनुष्य के इस दूसरे विचार से छिपी हुई सेवा का भाव उदय होता है और यह तथ्य भी उजागर होता है कि ऐसे भी हजारों लोग हैं जो छिपी हुई सेवा करते हैं और अपना नाम उजागर नहीं होने देते। 

इससे हम में निस्वार्थ सेवा का भाव उत्पन्न होता है। आज समाज में दिखावे का बोलबाला बढ़ रहा है। भौतिकता सब पर हावी हो रही है। लोग सामाजिक कार्यों में भी स्वयं की प्रशंसा के लिए आतुर दिखाई देते हैं और सेवा भाव कहीं दूर हो जाता है और यहीं से निकलता है स्वार्थ शब्द और भाव उत्पन्न होता है कि इसका स्वार्थ है, अपने स्वार्थ के लिए यह सब कर रहा है।
 
दूसरों के प्रति नि:स्वार्थ सेवा का भाव रखना ही जीवन में कामयाबी का मूलमंत्र है। नि:स्वार्थ भाव से की गई सेवा से किसी का भी हृदय परिवर्तन किया जा सकता है। हमें अपने आचरण में सदैव सेवा का भाव निहित रखना चाहिए, जिससे अन्य लोग भी प्रेरित होते हुए कामयाबी के मार्ग पर अग्रसर हो सकें। सेवारत व्यक्ति सर्वप्रथम अपने, फिर अपने सहकर्मियों व अपने सेवायोजक के प्रति ईमानदार हो। 

इन स्तरों पर सेवा भाव में आई कमी मनुष्य को धीरे-धीरे पतन की ओर ले जाती है। सेवा भाव ही मनुष्य की पहचान बनाती है और उसकी मेहनत चमकाती है। सेवाभाव हमारे लिए आत्मसंतोष का वाहक ही नहीं बनता बल्कि संपर्क में आने वाले लोगों के बीच भी अच्छाई के संदेश को स्वत: उजागर करते हुए समाज को नई दिशा व दशा देने का काम करता है। जैसे गुलाब को उपदेश देने की जरूरत नहीं होती, वह तो केवल अपनी खुशबू बिखेरता है। 

उसकी खुशबू ही उसका संदेश है। ठीक इसी तरह खूबसूरत लोग हमेशा दयावान नहीं होते, लेकिन दयावान लोग हमेशा खूबसूरत होते हैं, यह सर्वविदित है। सामाजिक, आर्थिक सभी रूपों में सेवा भाव की अपनी अलग-अलग महत्ता है। बिना सेवा भाव के किसी भी पुनीत कार्य को अंजाम तक नहीं पहुंचाया जा सकता। सेवा भाव के जरिए समाज में व्याप्त कुरीतियों को जड़ से समाप्त करने के साथ ही आम लोगों को भी उनके सामाजिक दायित्वों के प्रति जागरूक किया जा सकता है। असल में सेवा भाव आपसी सद्भाव का वाहक बनता है। जब हम एक-दूसरे के प्रति सेवा भाव रखते हैं तब आपसी द्वेष की भावना स्वत: समाप्त हो जाती है और हम सभी मिलकर कामयाबी के पथ पर अग्रसर होते हैं। सेवा से बड़ा कोई परोपकार इस विश्व में नहीं है, जिसे मानव सहजता से अपने जीवन में अंगीकार कर सकता है। 


प्रारंभिक शिक्षा से लेकर हमारे अंतिम सेवा काल तक सेवा ही एक मात्र ऐसा आभूषण है, जो हमारे जीवन को सार्थक सिद्ध करने में अहम भूमिका निभाता है। बिना सेवा भाव विकसित किए मनुष्य जीवन को सफल नहीं बना सकता। हम सभी को चाहिए कि सेवा के इस महत्व को समझें व दूसरों को भी इस ओर जागरूक करने की पहल करें। निस्वार्थ जीवन का मूलमंत्र दूसरों के प्रति नि:स्वार्थ सेवा भाव रखना है। सेवा भाव के लिए विनम्रता व सहनशीलता सबसे बड़ा गुण होता है। सहनशील व विनम्र हुए बिना हम सेवा भाव को अपने जीवन व आचरण में विकसित नहीं कर सकते। सेवा भाव से परिपूर्ण होकर ही हम अन्य लोगों के सामने मिसाल कामय कर सकते हैं, जिससे पूरे समाज को उत्थान व तरक्की के मार्ग पर सामूहिक रूप से आगे बढ़ाया जा सके। सेवा व्यवहार ही मनुष्य की पहचान बनाता है और उसकी नि:स्वार्थ भावना को चमकाता है। 

निस्वार्थ सेवा मानव की ऐसी सर्वोत्तम भावना है, जो मानव को सच्चा मानव बनाती है। मानवता के प्रति प्रेम को किसी देश, जाति या धर्म की संकुचित परिधि में नहीं बांधा जा सकता। जिस व्यक्ति के मन में ममता, करुणा की भावना हो, वह अपना समस्त जीवन मानव सेवा में अर्पित कर देता है। ठीक इसी भाव से हम सबको अपना जीवन समाज हित में आगे बढ़ाना चाहिए। सेवा भाव मनुष्यों के साथ ही पेड़-पौधों व जीव-जंतुओं के प्रति रखते हुए हम इसे वृहद स्तर पर जनोपयोगी बना सकते हैं। सेवा भाव अतुलनीय संपदा है जिसे लगातार ¨सचित करना हम सभी की नैतिक एवं सामाजिक जिम्मेदारी है। निस्वार्थ सेवा करने का अपना अलग आनंद होता है। 

एक बार सेवा करने की आदत पड़ जाती है तो फिर छूटती ही नहीं। जैसे कि हम बचपन से सुना या पढ़ा करते हैं कि सेवा सभी धर्मों का मूल है। अगर हम सेवा नहीं कर सकते तो हमारा यह मानव जीवन निरर्थक है। सेवा भाव के जरिए हम समाज को नई दिशा दे सकते हैं। असल में हमारा सेवा भाव ही हमारे जीवन में कामयाबी की असल नींव रखता है। सेवा भाव को अपने हृदय के भीतर विकसित करना हम सभी की नैतिक जिम्मेदारी है। सामाजिक स्तर पर भी सभी को इस ओर लगातार प्रयास करने चाहिए, जिससे देश व समाज का भला हो सके। अतः -हम सभी महान कार्य तो नहीं कर सकते लेकिन नि:स्वार्थ सेवा कर अपने समाज व परिवार का नाम जरूर रोशन कर सकते हैं। हम सभी को निस्वार्थ भाव से जीवन को जीने की कला अपने भीतर विकसित करनी चाहिए। निस्वार्थ भाव रखते हुए समाज हित में लगातार कार्य करना ही मानव जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है। इसलिए महापुरुखों के ये वचन हमे काफी ऊंची सीख प्रदान करते हैं -

मान बड़ाई देखि कर, भक्ति करै संसार।
जब देखैं कछु हीनता, अवगुन धरै गंवार।
मान बड़ाई ऊरमी, ये जग का व्यवहार।
दीन गरीबी बन्दगी, सतगुरु का उपकार।।



                                                   लेखक- अनोखे लाल द्विवेदी


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