साहित्य चक्र

19 June 2021

प्रकृति का दोहन




प्रकृति का कोई मूल्य नहीं, यह तो है अनमोल।

1- धरती मां की गोद में , उपजे मोती, मानुष,चून ,
   पेड़, फूल,फल,सब्जी पाएं , पाएं  खारा नून।
वर्षा जल और शुद्ध वायु का नहीं है कोई मोल ।
प्रकृति का कोई मूल्य नहीं,यह तो है अनमोल।।

2- ब्रान्डेड कपड़े, महंगी कार, रुपए बनाने के व्यापार ।
भोग विलास की लोलुपता ने, नष्ट किये नैसर्गिक उपकार ।। 
प्रकृति से हम दूर हो रहे  कर  रहे टालमटोल 
प्रकृति का कोई मूल्य नहीं,यह तो है अनमोल।

3- प्रकृति का दोहन, खूब करें औऱ करें  बर्बादी
     खतरे में है  धरा हमारी साँसत में आबादी।।
   भूमि,जल, वायु, पेड़, मिले हैं ये सब हैं बेजोड़ ।
   प्रकृति का कोई मूल्य नहीं,यह तो है अनमोल।।


4-  कोरोना काल में प्राण वायु बन गयी  वरदान ,
     कोरोना को मात दे गई और बचाई जान ।
   फिर आएगा कोरोना ,अपनी धरा है गोल ।
प्रकृति का कोई मूल्य नहीं,यह तो है अनमोल।।


 5 बीमार, लाचार, गरीब अमीर ढूढ़े सभी हवा को ,
   ढूढ़े से भी ना मिल पाए कोस रहे किस्मत को ।
   पेड़ो को हम खूब लगाएं बोले सब  मीठे बोल ।
प्रकृति का कोई मूल्य नहीं, यह तो है अनमोल।।


                            मुल्क मंजरी


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