उम्र पक जाए तब फिर बुलाया करो,
अपनों को न ऐसे छुड़ाया करो ।
मौत का गम न ऐसे दिलाया करो,
दर्द होता बड़ा न ऐसे रुलाया करो।
उम्र पक जाए - - - - -
टूट जाते है तब न विखराया करो,
दर्द होता बहुत न तड़पाया करो ।
ये खेल कैसा है बोलो मौत का,
बीच मझधार में न ऐसे डुबोया करो।
उम्र पक जाए - - - - -
भगवान बन गये तुम इस जमीं के,
जरा इंसान बन कर दिखाया करो।
दर्द तुम भी सह कर दिखाया करो,
यूं मौत का मंजर न ऐसे दिखाया करो।
उम्र पक जाए - - - - -
क्या जरूरत थी इंसा में दिल रखने की,
क्या जरूरत थी इतनी ख़ुशी देने की।
गम के बादल न ऐसे बरसाया करो,
दीप जलते दिए को न ऐसे बुझाया करो।
उम्र पक जाए - - - - -
दीपमाला शाक्य "दीप"
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