दिन और रात की तरह
मन गढंट बात की तरह
मन के इरादे धुंधला से गए हैं।
चाहतों के चमन में
थे पूजा के फूल।
मन बहक सा गया
फूल कुम्हला गए हैं।
बसना चाहता था कोई
उजड़ता है बार बार।
ढलकने से पहले ही
आंसुओं की बूंदें,
हवा के झोंके
सहला से गए हैं।
समझता है कौन ?
यहां मन की बात।
कहने से पहले ही
ओंठ सकुचा से गए हैं।
अर्चना त्यागी
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