साहित्य चक्र

04 July 2021

एक मजदूर की व्यथा





तुम क्या जानोगे हाल मेरा,
साहेब तुम पैसे वाले हो।

तुम रहते हो बड़े महलों में,
मैं सादी झोपड़ी वाला हूं ।।
और तुम लगाते हो छप्पन भोग,
पर मैं रूखी रोटी वाला हूं।।

तुम क्या जानोगे हाल मेरा, 
मैं एक गरीब कहलाता हूं।।

मैं पैदल चलने वाला हूं,
तुम गाड़ी आडी वाले हो ।
मेरे बच्चे जाए सरकारी में,
तुम प्राइवेट स्कूल वाले हो।।

तुम क्या जानोगे हाल मेरा,
साहेब तुम पैसे वाले हो ।।

घर भले मेरा छोटा है,
पर खुशियां तुमसे ज्यादा है।
और हम भले है गरीब की औलादें,
पर हमें प्यार से रहना आता है।।

और तुम क्या जानोगे हाल मेरा,
मैं एक गरीब कहलाता हूं।


                                            -निकिता रघुवंशी 


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