साहित्य चक्र

08 April 2025

कविता- तेरा प्रभाव....




मेरा ये भाव 
है तेरा प्रभाव, 
बिन तेरे जैसे 
लागे आभाव।

कैसा लगाव, 
कितना जुड़ाव, 
थके पथिक को 
मिले शीतल छाँव।

कभी ऐसा लगे 
जैसे गये थे ठगे 
जो तुम मिले 
लगते सगे।

अविरल बहे 
कितना सहे
जैसे नदी 
चुप ही रहे। 

कैसी ये डोर
खींचे तेरी ओर
थाम तो लो
ये दूजी छोर।

भिगो कर मन
खिलाया सुमन 
सुभासित करो 
मेरा उपवन।

मेरे आँगन 
पहन कंगन 
खनकाओ तुम 
ये जीवन।

होता प्रतीत,
बन गये मनमीत, 
हृदय के द्वार 
नाम तेरा अंकित।


                                            - सविता सिंह मीरा


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