साहित्य चक्र

30 January 2022

कविताः इंकलाब जिन्दाबाद रहे




हम हिन्दुस्तानी हैं यहाँ अब हर एक जन बताएगा 
हिन्दु हो या मुस्लिम नौजवान जन गण मन गायेगा
और अम्बर बाटा बाटी धरती अब तिरेंगे को न बाटों
जोश हो की हर बच्चा हिमालय पर तिरंगा लहराएगा

ये एक दिन की देशभक्ती नहीं हमे यहाँ जूनून होना चाहिएं
में रहु या न रहु मिट्टी हो जाऊं पर मेरा ये देश होना चाहिएं
मरना हैं यहाँ हर इंसा को जिसका कफ़न उसके वस्त्र होंगे
में मरू देश के लिए तो मेरा कफ़न बस तिरंगा होना चाहिएं

यहाँ तिरंगा हैं उन दीवानो का जो इसकी शान पर मर मिटे
धन्य हैं वह माँ जिसके बेटे इसके गौरव गान पर मर मिटे
भगत सिंह राजगुरु और बिस्मिल जैसे हुएं हैं परवाने यहां
जो हंसते हंसते हमारे ईस प्यारे से हिन्दुस्तान पर मर मिटे

जब भी लब से निकले दुवा तो यही मेरा मुल्क आबाद रहे
छोड़कर गये अपने परिवार को शहादत में वो वीर याद रहे 
में खड़ा रहुं देश की सीमा पर अपने सीने पर गोली खाऊ
चेहरे पर मुस्कान हो और लबों पर इंकलाब जिन्दाबाद रहे


                                   लेखक- सोनू धनगाया


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