अच्छा तो तुम सही मैं गलत हूँ
लेकिन ये बताओ
मुझ पे हाथ उठा के,
मेरे आत्म सम्मान को गिरा के
तुम सही कैसे हो सकते हो ....
मेरे हर फैसले को नकार कर
कमजोर हूँ मैं कदम कदम पर
मुझे ये एहसास दिला कर
मेरे आत्म विश्वास को दबा कर
तुम सही कैसे हो सकते हो ....
सिर्फ नजरों से ही देख कर
तुम मुझे मेरी ही नजरों में गिरा देते हो
जो कभी हँसकर बातें कर ली किसी से तो
पलभर में मेरे चरित्र पर सवाल उठा कर
तुम सही कैसे हो सकते हो ....
सिर्फ तुम से मेरे हँस कर बात करने भर से
तुम्हें मेरी इज्जत के साथ खेलने की इजाजत है
तुम्हारा ऐसा सोच लेना
और अगले पल मेरे अस्तित्व को मिटा कर
तुम सही कैसे हो सकते हो....
प्रिया कुमारी