पंचायती राज संस्थाओं में संस्था प्रमुखों के चयन की पारदर्शिता, और शुचिता के लिए आचार, कदाचार, साम, दाम, दण्ड भेद के हालिया प्रमाण, उत्तर प्रदेश के पंचायती चुनावों से संज्ञान लिया जा सकता है, जो उत्तर प्रदेश ही नहीं भरता के सभी प्रदेशों में कमोबेश समान ही है। महात्मा गांधी, और राजीव गाँधी के अतिरिक्त आज तक हमारी विधायिका नें पंचायती चुनावों के सुधारों पर कभी भी चिन्तन नहीं किया।
भारत की 95 प्रतिशत जनता, आज भी निर्वाचन आयोग, और न्यायपालिका पर विश्वास कायम है, दोनों संस्थायें, कुछ अपवादों को छोड़कर स्वतंत्र भारत के संवैधानिक प्रावधानों के तहत अपनी भूमिका, कर्तव्यों का निर्वाहन शुचिता के साथ कर ही रही हैं, प्रतिशत न्यायाधीश देश के संविधान का अनुश्रवण/अनुशरण कर विधायिका की अपभ्रंश, बिकृतता और हठधर्मिता, को, स्वच्छ बनाने का कार्य कर ही रहे हैं।
आज आवश्यकता है, अपेक्षा है, निर्वाचन आयोग, न्यायपालिका के मा० न्यायाधीशों व प्रधान न्यायधीश, उत्तरप्रदेश के हालिया पंचायती चुनावों में जिला पंचायत, क्षेत्र पंचायत प्रमुखों को वार्ड सदस्यों द्वारा चयन प्रक्रिया की पारदर्शिता का संज्ञान लेते हुए, पंचायती राज चुनाव ऐक्ट के संशोधन के लिए और अध्यक्षों/प्रमुखों का चयन जन मत द्वारा करवाये जाने की व्यवस्था करवायी जाय,, जिससे संदेह, भ्रान्ति, और भ्रष्टाचार में कमी आयेगी। धन बल और बाहुबल की शक्ति क्षीण होगी तथा पंचायती राज संस्थायें सुदृढ़, सक्षम और सक्रिय हो सकें।
स्वतंत्र भारत के संविधान निर्माताओं नें भारत-गण राज्यों भौगोलिक सामाजिक, सास्कृतिक, विषमताओं, बिभिन्नताओं के साथ ताल मेल स्थापित करते हुए , पूज्य बापूजी के पंचायती राम राज की कल्पना को साकार रूप देने के लिए पंचायती राज संस्थाओं को सुदृढ़, सक्षम, और क्रियाशील, बनाने के उद्देश्य से संविधान के अनुछेद- 243 (ट) के उपबंध (1) में राज्यों के लिए निर्वाचन आयोग गठन का आधिकारिक प्रावधान किया है।
जिसके तहत भारत गण राज्य अपनी अपनी सुविधा और नाम के अनुसार पंचायती राज संस्थाओं का गठन करते आ रहे हैं। स्व० राजीव गान्धी जी पंचायतों की मजबूती, निष्पक्षता, सक्षमता के लिए 73वें संविधान संशोधन के माध्यम से पंचायतों में त्रिस्तरीय गठन का रास्ता खोला, और इनकी अवस्था, व्यवस्था, सरलता निर्वाचन के नियम प्रावधानों का कार्य राज्य निर्वाचन आयोग को सौंपा गया है।
जिसके गर्भ में व्यापकता, सरलता और समय समय संशोधन करने की व्यवस्था भी है, इसी के तहत वार्ड सदस्य, और प्रधान का चयन जन मत के द्वारा किया जाता रहा है, किन्तु परन्तु सांसदों, विधायकों ने अपने बर्चस्व और अधिकारों को देखते हुए पंचायत प्रमुखों का चयन जन मत द्वारा नहीं होने दिया और आज भी परम्परागत रूप में वार्ड सदस्यों द्वारा ही जिला पंचायत और क्षेत्र पंचायत प्रमुखों का चयन होता आ रहा है जिससे धनबल, बाहुबल, भ्रष्टाचार, खरीद फरोख्त बढता जा रहा है। जिससे पंचायत राज की स्वच्छ, सक्षम, सुदृढता समता और समानता और ग्राम्या विकास, ग्रामीण भारत की परिकल्पना औपचारिक पूर्ति मात्र हो रही है।
सच्चाई और यह कटु सत्य है, कि वार्ड सदस्यों के चयन होने पर हर राजनीतिक दल गुणां भाग अपने पक्ष में मानता है परन्तु पंचायत प्रमुख का उमीदवार 50-50 लाख रुपये देकर सदस्यों को अपने पक्ष में कर लेता है। सभी ठगे जाते हैं। सर्वे गुणा कांचनमाश्रयन्ति, की जीत हो जाती है, निर्वाचित अध्यक्ष/प्रमुख के घर पर कल्पवृक्ष तो है नहीं, वह अपने लाखों, करोड़ों की वसूली, अपने बाहुबल से विकास कार्यों के लिए आवंटित धन से सदस्यों, अधिकारियों, जनता से ही करेगा।
जब तक जन मत द्वारा अध्यक्ष और प्रमुखों का चयन नहीं होता, तब तक ग्राम्य विकास की परिकल्पना बेमानी ही है, और धन बल बाहुबल बढता ही जायेगा,, एक मात्र मा० न्यायपालिका और न्यायधीशों से अपेक्षा है कि पंचायती राज चयन प्रक्रिया में अमूल चूक परिवर्तन के लिए स्वत:संज्ञान लें।
विनोध भट्ट जी की कलम से...
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