दिल ऐसे क्यों कहता है
कि मैं उसके कंधे पर सिर रखूँ
वो हौले से मेरा सिर सहलाये बोले
क्या हुआ ' मैं हूँ न'
दिल ऐसे क्यों कहता है
कि वो कहे मैं वहाँ तक हूँ जहाँ तक
तुम्हारे कदम चलें,,
दिल ऐसे क्यों कहता है कि
वो कहे जो तुम हो वो कोई और नहीं
दिल ऐसे क्यों कहता है कि
मेरे बगैर कुछ कहें
वो सब समझ जाये और कहे ,करूंगा मैं ऐसे ही
दिल ऐसे क्यों कहता है कि
मेरी आवाज सुन वो समझ जाये
कि हूँ मैं उदास और वो कस कर गले से लगा ले..
दिल ऐसे क्यों कहता है कि
वो हो सामने मेरे और मैं करूँ ढेर उससे बात,,
और वो कहें कितने सुनहरे ख्वाब हैं न
तुम्हारी इन प्यारी बातों में..
दिल ऐसे क्यों कहता है।
अपराजिता मेरा अंदाज
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