आँख मलती
जग रही बिटिया
मुँह बनाती।
ठप्प दुकान
नहीं कोई ग्राहक
बुरा समय।
गलियाँ तंग
आवाजाही हो रही
चुभे दीवार।
मकान छोटा
मोटे पतले लोग
विवश खड़े।
बारिश हुई
टपक रही छत
तनता छाता।
बुजुर्ग बैठे
भूली बिसरी यादें
पुरानी बातें।
अशोक बाबू माहौर
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