माता खाये या न खाए,
अपने बच्चों को खिलाये
सन्तान नहीं वो पापी है,
जो माता को भूल जाए।।
माता से बढ़कर न,
इस संसार में कोई दूजा है
हुआ भला उसका जो
माता के चरणों को पूजा है।
माता की ममता, मर्यादा
जिसको समझ न आए
सन्तान नहीं वो पापी है,
जो माता को भूल जाये।।
आँखों से ओझल कभी न,
जिसने तुमको की है
दूध पिलायी तुमको,
खुद तो पानी पी है
धरती, अम्बर नीलगगन,
देवलोक भी शीश झुकाये
सन्तान नहीं वो पापी है,
जो माता को भूल जाये।।
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प्रो.डॉ. देशराज विक्रांत
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