मुश्किलें जीवन में कभी कम होएगी नहीं, है परवरिश
ठोस तो सन्तान इन ठोकरों में खोयेंगी नहीं, ग़र दिया
संस्कार हमने तो अनीति होएगी नही..
चक्रव्यूह के जैसा है जीवन बिन संस्कार इनमे उलझते
जाएँगे, ग़र दिए संस्कार हमने तो ये उलझन खुद वो
सुलझायेंगे, ग़म का घुट भी पीना पड़े तो हंस कर सह
जाएँगे, है परवरिश ठोस तो सन्तान..
ये गूढ़ रहस्य खुशियों का संस्कारों से ही समझ वो
पायेंगे, है संस्कार तो जीवन को रसीला पाएँगे,
अन्यथा राग, द्वेष, ईर्ष्या,जलन, में ही रह जाएँगे,
संस्कार गर बच्चों में भरते जाएँगे, इस नयी पीढ़ी को
ग़ज़ब तोहफ़ा हम दे जाएँगे, संस्कारी बच्चे मुश्किलों में
रोएँगे नही धैर्य चुनौतियों में अपना खोएँगे नहीं,
है परवरिश ठोस तो सन्तान..
ठोस तो सन्तान इन ठोक़रो में खोएँगे नहीं, मुश्किलें
जीवन में कभी कम होएगी नहीं है परवरिश ठोस तो
सन्तान इन ठोकरों में खोएगी नहीं..
सुषमा पारख
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