साहित्य चक्र

04 July 2021

मैं इस लिये नाम चाहती हूं।





मैं इस लिए नाम चाहती हूं।
कि मैंऔरत हूं।
मैं इस लिए नाम चाहती हूं।
मैं गृहस्थ जीवन मैं हूं।
मैं इस लिए नाम चाहती हूं।
कि मैं वो बेटी हूं,
जो संघर्षों में जीवन जीती  हैं।
मैं इस लिए नाम चाहती हूं।
कि मैं गर्भो में कट जाती हूं।
मैं इस लिए नाम चाहती हूं।
मैं दहेज के लिए जला दी जाती हूं।
मैं इस लिए नाम चाहती हूं।
मैं कब हवस बन जाऊं पता नहीं।
मैं इस लिया नाम चाहती हूं।
कुरूतियो कुप्रभाओ की,
 बलि चढ़ जाती हूं।
मै इस लिए नाम चाहती हूं।
मैं विधवा हो जाऊं तो,
मैं अपशगुनी मानी जाती हूं।
मैं इस लिए नाम चाहती हूं।
मैं मां बन सकती हूं।
पर वंश नहीं चला सकती हूं।
मैं इस लिए नाम चाहती हूं।
मैं चूड़ी बिंदी के बंधन में रह कर,
 भी मंजिल पा सकती हूं।
मैं इस लिए नाम चाहती हूं।
घर का काम करके भी,
नौकरी भी करती हूं।
मैं इस लिए नाम चाहती हूं।
हजार मुश्किलों  सह कर भी,
मैं बच्चों को पाल लेती हूं।
मैं इस लिए नाम चाहती हूं।
 मैं समाज का नजरिया बदला चाहती हूं ।।


                            दीपमाला शाक्य "दीप"




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