वो बारह तेरह साल की
अबोध बालिकाएं ।
गुड्डे गुड़ियों के खेल के साथ
अल्हड़ पन से गुजरती
उनकी वो मासूम उम्र।
सामाजिक ताने-बाने
और प्रकृति के नियमों से बे-खबर
एक विध्वंस ज्वालामुखी
अपने अंदर समेटे
जो कभी भी फट सकता है।
वह नहीं जानती
जिस दिन , जिस पल
वह ज्वालामुखी फटेगा
सामाजिक धरातल पर
अनदेखे , अनसुलझे
आडंबरो की चाशनी में
डूबे हुए नियम
उम्र भर के लिए उसके लिए
बेड़ियां बन जाएगे।
एक अप्रत्याशित घटना से
उसका सामना होगा
उसका अबोध पन
उसके चेहरे की मासूमियत
लाल सुर्ख हो जाएगी।
उस ज्वालामुखी के लावे को
उम्र भर उसे ढोना होगा।
अब वो नाबालिग की
कतार से आगे बढ़कर
बालिग की कतार में
आ खड़ी होगी।
वह बारह तेरह साल की
अबोध बालिका स्त्री बन
सृष्टि के नियम के
अधीन हो जाएगी।
कमल राठौर साहिल
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