साहित्य चक्र

13 July 2021

मेरी ज़िंदगी




मेरी ज़िन्दगी एक सपना है 
जो एक दिन ख़तम हो जायेगा 
हम नयी सुबह में उठेंगे 
और हम रात के सपने को 
कभी याद न कर सकेंगे 
लेकिन हमारे मस्तिष्क में 
उस सपने की एक झलक अभी भी 
हमारी दिल की धड़कनो को 
बढ़ा देती है 
क्यों की 
एक कहानी की सारांश की तरह 
मेरे सपने में माँ थी

मुझे बस पता नहीं क्यों उनकी 
ही शकल अपने चेहरे से ज़्यादा याद है..
मेरे सपने में पूरी दुनिया भी थी 
जहां कुछ कागज़ी काम के 
साथ कागज़ी रिश्ते भी थे 
अब सुबह उनकी शकल याद नहीं आती 
अब सुबह बस माँ की याद आती है 

वो भी तो सबकी तरह इंसान ही थी 
वो भी तो भगवानो के चलते कांटो 
पर चलती थी 
तो क्यों उनकी कभी चीखे सुनाई नहीं दी 
वो भी तो सबकी तरह इंसान ही थी 
तो क्यों उसने अपनी जान को सबसे नीचे रख कर 
हमारी काले शीशे की शान को 
चमक दी और हमसे कालिख भी नहीं मांगी 
बस एक छोटा दिखावा प्यार 
वो भी शयद हम..

हम दूसरे को आइना दिखने में लग गए 
लेकिन कभी आँखों में उनकी 
ये न बता सके की ये 
ख़ुशी के आंसू है या दुःख के 
तेरे चेहरे में झुर्री की वजह क्या है 
और सुई घुसने पर रोने वाला मैं
ये न पूछ स्का की तेरे शरीर में 
मेरी वजह से जो सिलाई हुई थी 
उसमे अभी दर्द है क्या 

हम उससे दूर भागते रहे 
ताकि कागज़ से अपने चेहरे को अच्छा करेंगे 
लेकिन यह देखना भूल गए 
की वो भूख में भी चमकती है 
क्यों 
शायद यही सवाल है 
जिसकी वजह से मेरे सपने में सिर्फ माँ 
की शकल याद आती है मुझे 

मुझे याद नहीं मेरा सपना कैसे ख़त्म 
हुआ लेकिन कुछ याद है की 
मुझे इसका उत्तर मिलने ही वाला था 
लेकिन रात छोटी पढ़ गयी 
और सुबह जल्दी होगयी


                                            नीनो की काली स्याही से...


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