मेरे घर की दहलीज पर, शहनाई की गुंजन से!
दिल सहमा -सहमा सा था मेरा,
मैं कैसे करूंगा विदाई?
क्योंकि मेरी बेटी,अब हो रही पराई!
अब संभल नहीं रहे ,मेरे जज्बात,
जो वर्षों से थी मेरी! वह पल भर में ,
कैसे हुई पराई?
जीवन के पथ पर ,हाथ पकड़ कर,
जिसे चलना सिखाया!
दिल सहमा-सहमा है,
आज उसी बेटी कि ,
मैं कैसे करूं विदाई?
नौ माह गर्भ में ,मैंने जिसको सजाया!
हिय मैं अब उठी हुक,
क्षण भर में मैं,उस बेटी की!
कैसे कर दूं ? विदाई!
जो दिन-रात चहकती थी,मेरा ख्याल रखती थी!
अब दिल मेरा घबराता है !
मैं कैसे करूं विदाई ?
मन की पीड़ा को क्यों नहीं ?
उसने समझा,
जिसने बनाई विदाई!
हाय किसने बनाई विदाई?
विदाई की इस पीड़ा से ,बच ना पाया कोई !
डॉ माधवी मिश्रा
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