साहित्य चक्र

25 July 2021

रिमझिम बरसता सावन




सावन में हर तरफ
हरियाली ही हरियाली है
तृप्त हो गई प्यासी धरा
अब सोना उगलने वाली है

चल पड़े हैं अब सब खेत की ओर
खेत में भर गया है पानी
सब लोगों ने मिल कर
अब धान की फसल है लगानी

कहीं बैलों की घंटियां बज रहीं
सुन कर बजने लगे हैं दिल के तार
कहीं खेत में ही पेड़ के नीचे बैठ कर
खाना खा रहा सारा परिवार

कहीं हो रही धान की रोपाई
कहीं मक्की की फसल लहलरहाई
काली घनघोर घटाएं बरसने को तैयार
बादलों ने भी अब ली है अंगड़ाई

पपीहे की पिपासा शांत हुई
जंगल में नाच रहा है मोर
कोयल भी कुह कुह गा रही
पवन भी मचाने लगी है शोर

रिमझिम बरस रहा अब सावन
घर आओगे तुम कब साजन
प्यासी आंखे देख रही राह
दर्श दिखा जाओ मन भावन


रवींद्र कुमार शर्मा


No comments:

Post a Comment