साहित्य चक्र

31 July 2021

एक कहानी- बैदेही

जथा नाम तथा काम, बैदेही, झरने सी उन्मुक्त, अपने ही रौ में बहने वाली, ऐसी है हमारी बैदेही, बडे से घर की छोटी बेटी, पच्चीस चचेरे भाई बहनों के बीच अपनी जगह बना लेना भी बहुत बडी बात है।

पर सबकी लाडली, या समझ लिजिए खुशियों की गुल्लक, जिससे जुड जाये समझो उसका सितारा बुलंद,  घर के आंगन की आजाद चिडिया पर बाहर के लिए पंख बधें, उड जाना चाहती है, सारे बंधनों को पर पापा के आगे नतमस्तक, उसका मानना था, किसी के मन  को चोट नही पहुंचाना, पापा, आप  मुझ पर इतनी बंदिशे क्यू लगाते हो, उसने एक दिन हिम्मत कर पापा से पूछ लिया। नापे तूले शब्दो मे पापा का जबाब था, बेटियां कांच होती है।





अगर किसी से टूट जाये, तो उसकी कीर्चिया,सारे खानदान की कई पीढियों तक चुभती है। पर वो कुछ नही समझ पाती, समय का बहाव, उम्र के उस पायदान पर पहुँचने से पहले, ही गठबंधन, कोई चुक नही कोई भूल नही, पति के साथ जी कर जाना जीवन का मर्म,परिवार में सबकी खुशियों का ख्याल रखते रखते, कब वो सबके दिल मे बस गयी उसे पता न चला, बड़े से लेकर बच्चे तक, उससे स्नेह रखते, कहते हैं जब समय अपना तो सब अपने, और जब समय पराया, तो अपने भी पराये।


बैदेही वो बैदेही, जी पति की आवाज सुनकर, रसोई से, हाथ पोछती हुई बैदेही सामने आकर खडी हो गयी। बैदेही की अस्त व्यस्त हालत देखकर, उसके पति, सुशील को हंसी आ गयी, क्या हुआ, बैदेही ने पूछा, अरे कुछ  नहीं पति मुस्कुराये, नहीं कुछ तो, सुशील उसके करीब आ गया।

तुम कितनी मासूम सी हो, धक से हो गया, कुछ उसके सीने में, उसने नजरे ऊपर उठायी सुशील जा चुका था। उसका काम में मन न लगा, उसका मन विचारों में उलझ गया। उसके मन मस्तिष्क में उथल पुथल मच गयी। 

पर वो बोले किसको, वो खुद से हर दिन लडती है। वैदेही का राम तो उसके पास था! पर जो राधा का रूप उसमे समाया था। उसका श्याम कही खो गया था। उसका तन तो सारे, कर्म निभा रहा था, पर मन विवेक शून्य था।

कही बासुरी की धुन, तो कही शंखनाद, बैदेही तब्दील हो रही थी! उसके सिवा ये बात कोई नही जानता था। प्रेम में वैराग्य ही तो मिलता है, वैदेही भाग जाना चाहती है सबसे दूर, अपने विचारों से, अपनो से सबसे, नहीं चहिए उसे कुछ बस वो सुरक्षित रहे, वो कभी भी उसमें जीवंत हो जाता है।

जिसके लिए वो कमजोर हो जाती है, अश्रु छलक जाते हैं। पर वो मुस्कुराता है मंद मंद, बस उसी मुस्कुराहट पर तो वो बलिहारी जाती हैं। बेटे की आवाज से तन्द्रा टूटी, सब छोड़ दिया उसी परमात्मा के हवाले जो करें अब वो, बस कुछ गलत न हो उसके साथ, अखिर वो बैदेही है, जानकी, उसमें सहने की ताकत है।

सह लेगी सबकुछ पर उफ न करेगी, अखिर वो बैदेही है।


                            श्रीमती रीमा महेंद्र ठाकुर


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