इंद्र का वर जलद अम्बर करे वास
अवनी की तपती साँसों का उच्छ्वा
समीर यान जंच विचरे व्योम विस्
उमड़ घुमड़ गरज बरसाए जलधार
मृदु स्वप्न धरा के फूटे अंकुर
हरी हो गई जब बरसे घनन घन
नभ चमक दमक दामिनी का नर्तन
मत्त मयूर नाचे सुन बूंदों की छ
कारी घटा अम्बर झुका बरसाए नवजी
सराबोर हो गई धरणी हर दिशा हर क
रेखा
रेखा जी अच्छा लिख रही हे
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