साहित्य चक्र

25 July 2021

हीरा





हमेशा सौम्य, सहज और शांत, सुख दुख में समान दिखने वाली आशाजी आज अत्यधिक प्रसन्न नज़र आ रही थीं। घर में सीमित संख्या में मेहमान उपस्थित थे। छोटा सा घर परंतु बिजली की माला की लड़ियों से सजा हुआ जगमग। आंगन के एक हिस्से में किसी धार्मिक अनुष्ठान के संकेत मौजूद थे। दरवाजों पर फूलों के बंदनवार सजे थे। भीनी भीनी खुशबू से सारा घर आंगन महक रहा था। सभी लोग प्रसन्न थे और वार्तालाप में व्यस्त थे। दूसरी ओर एक छोटे से लाॅन में खाने पीने का प्रबंध था। वस्तुओं की संख्या सीमित थी परंतु गुणवत्ता में उत्कृष्ट। आशाजी अपने पतिदेव दिवाकरजी के साथ मेहमानों के सत्कार में व्यस्त थीं। एक-एक मेहमान से मिलकर उनका हाल-चाल पूछ कर वे  दोनों उसका धन्यवाद अदा कर रहे थीं।

तभी पूर्व में उनकी पड़ोसी रह रह चुकी चंद्रानी वहां से गुजर रही थी। अपने कड़क स्वर में बोली," लगता है कि बड़ी बेटी का ब्याह हो रहा है। देर सवेर ही सही रिश्ता हो ही गया कल्लो का।"

आशाजी के पति इत्तेफ़ाक से किसी काम से बाहर सड़क पर गए थे। चंद्रानी को देखकर वह हाथ जोड़कर खड़े हो गए पर कुछ ना बोले। बिन बुलाए मेहमान बन जाना चंद्रानी की  पुरानीआदत थी। गाहे-बगाहे बिना बुलाए आ ही जाती थी वह। बोली-" हमें निमंत्रण नहीं दिया बेटी की शादी का...?" "चलो अंदर जाकर देख तो आए कि कल्लो दुल्हन बनकर कैसी दिख रही है।"

दिवाकर जी के दिल में भी एक चोट उभर आई थी उसकी बातें सुनकर परंतु खुशी का मौका था अतः वे खुद को संभालने की कोशिश करने लगे। कमान से विषैले तीर छोड़कर अभी तक आंगन में पहुंच गई थी वह। आशाजी दिखीं तो ज़ोर से बोली," बधाई हो, कल्लो की शादी की।" आशा जी हैरत से उसकी ओर देखने लगीं, "अरे ! आप यहां कै एएएए से.. आपको किसने कहा कि ? वाक्य पूरा नहीं कर पाई थीं वह।

उनका दिल धड़कने लगा कि यह रंग में भंग डालने कहां से आ पहुंची। कितना दिल दुखता था उनका जब चंद्रानी उनकी बेटी को कल्लो बोलती थी। उनकी बेटी बचपन में कुछ ज्यादा ही काली थी मां तो मां होती है वह रंगभेद तो नहीं करती। उसने अपनी बिटिया का नाम हीरा रखा था।अपमान का घूंट पीकर रह जाती थीं वह, कई बार चंद्रानी को बोल भी दिया था कि उसकी बेटी को ऐसे संबोधित ना करें पर चंद्रानी आदत से मजबूर  जो थी। बिच्छू का स्वभाव होता है, भला डंक मारना कहां छोड़ता है ?


तथ्यों को बिना जांचे-परखे किसी निष्कर्ष पर पहुंच जाना भी चंद्रानी की बहुत बड़ी विशेषता थी। हीरा को साधारण से कपड़ों में देखकर फिर चौंकी वह। तभी उसे पता चला कि यह जलसा किसी शादी का नहीं है वरन हीरा की कामयाबी का है। वह यूपीएससी की परीक्षा उत्तीर्ण कर भारतीय प्रशासनिक अधिकारी बन चुकी है। वह कुछ बोलने वाली थी पर शब्द इस बार उसके मुंह के अंदर ही रुक गए। हीरा ने उसे देखा तो प्रणाम कर बैठने का आग्रह किया। 'चंदन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग' वाली सूक्ति हीरा जैसे लोगों के लिए ही तो चरितार्थ है। चंद्रानी अब ज्यादा देर वहां ठहरने की स्थिति में नहीं थी। जल्द ही किसी काम का बहाना बनाकर वहां से निकल गई। हमेशा दूसरों को प्रताड़ित करने वाली और अपमानित करने वाली चंद्रानी आज  स्वयं आत्मग्लानि का अनुभव कर रहे थी।मानो घड़ों पानी पड़ गया हो उस पर।


उधर आशाजी कार्यक्रम से निपटीं तो काफी थकी हुई थीं। सुबह भी काफी ज़ल्दी उठ गई थी। बिस्तर पर लेटी परंतु आंखों में नींद का नाम नहीं था, मन बेचैन था।पुराने समय की सारी घटनाएं आंखों के सामने किसी फिल्म की रील की तरह चलने लगीं। कैसे हीरा रो-रोकर आती- "मां, पड़ोस वाली आंटी दोस्तों सामने में मुझे कल्लो बुलातीं हैं।"


आशाजी उसे समझातीं," बेटा ! तू तो हमारा हीरा है। आंटी की बातों पर ध्यान मत दिया कर। उनकी तरफ मत जाया करना।" उन्होंने चन्द्रानी को कहा भी,"दीदी, लोगों के बीच में हीरा को गलत नाम से संबोधित मत कीजिएगा। उसका बाल मन आहत होता है।"

पर चंद्रानी में स्त्रियोचित गुणों का अभाव था।एक बेटी का दिल दुखाने में उसे न जाने क्यों आनंद आता था। हीरा को कहीं भी आते जाते देखती तो जोर से कल्लो कहकर चिल्लाती और फिर हंसती। आशा जी और दिवाकर जी ने तो  कुछ समय बाद घर ही बदल दिया था क्योंकि ऐसे लोगों के बीच में रहना बच्ची के लिए घातक हो रहा था। नए घर में आकर आशाजी ने बेटी को इस सदमे से उबरने में पूरा सहयोग दिया। उसे पढ़ाई की ओर प्रेरित किया। परिणाम सुखद रहा। आज हीरा आईएएस अधिकारी बन गई थी। सच तो है  कि कोयले की खदान से ही हीरा निकलता है।


                                                     अमृता पांडे


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