सुनो..
बहुत बोलती हैं तुम्हारी आँखें..
तुम्हारी आँखें बहुत बातें करती हैं!
जब मैंने पहली बार कुछ कहा था,
तब तुम्हारी आँखों ने ही मीठा सा जवाब दिया था।
मैं इतना ख़ुश हुई कि मुझे खुद से सोचा जवाब ही लगा..
पूछा भी नहीं कि जवाब था क्या..
मैं अक्सर यूँ ही तुम्हारी आँखों की बातों में उलझी रहती..
इसीलिए तुम्हें कहा भी कि होंठों से कुछ कह लो..
कभी कभी शांत रखो इन सुथरी आंखों को..
पर सच कहूं,
तुम्हारी आंखों की भाषा ही प्यारी है,
यूं ही बोलती रहें..
कुछ कुछ कहती रहें..
मुझे निहारती संवारती रहें..
क्यूँकि..
बहुत बोलती हैं तुम्हारी आँखें..
तुम्हारी आँखें बहुत बातें करती हैं।
अपराजिता मेरा अंदाज
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