माँ सी प्यारी धरा हमारी,
हमको है प्राणों से प्यारी।
देवों ने मिल इसे रचाया,
वन-उपवन से इसे सजाया।।
देखो कितनी लगती न्यारी,
देती सुख-सुविधा है सारी।
नित्य उठ हम करें अभिनंदन,
मस्तक झुका करें हम वंदन।।
कितना सुंदर, कितना प्यारा,
ऋषि-मुनियों ने इसे सँवारा।
चौदह - रत्न यहाँ से पाया,
देवों ने यहाँ घर बनाया।।
द्यौ से प्यारी धरा हमारी,
इसकी माटी है गुणकारी।
रामचंद्र जब वन में आए,
इसके रज से तिलक लगाए।।
कुमकुम कुमारी 'काव्याकृति'
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