व्यक्तित्व के निर्माण में साहित्य की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। हम जिस तरह की साहित्य को पढ़ते या सुनते हैं, उसी के अनुरूप हमारी सोंच बनती जाती है और हमारा मानसिक विकास वैसा ही हो जाता है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि किसी व्यक्ति के चारित्रिक निर्माण में साहित्य का बहुत बड़ा योगदान होता है।
कहा भी जाता है कि कलम की धार तलवार से भी ज्यादा होती है। साहित्य में इतनी ताकत होती है कि वह किसी भी समाज की दशा व दिशा बदल दे। कोई घर -परिवार,समाज या देश अपने आप में सभ्य या असभ्य नहीं होता बल्कि वह सभ्य या असभ्य बनता है तो वहाँ रहने वाले व्यक्तियों से। यदि व्यक्ति शुभ आचरण वाले एवं सुसंस्कारित होंगे तो निश्चय ही उनके द्वारा संपादित कार्यों का असर समाज पर पड़ेगा और एक सुंदर समाज का निर्माण होगा।
दस वर्षों बाद हमारा समाज या देश कैसा होगा इसका निर्धारण आज के हमारे बालक करेंगे। जिस तरह की शिक्षा हमारे बच्चों को मिलेगी या जैसी साहित्य को बच्चे हमारे पढेंगे या सुनेंगे उसी के अनुरूप उनकी सोंच विकसित होगी और उनका मानसिक विकास होगा। इसलिए यदि हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे मानवीय गुणों का धारक बनें ,सभ्य एवं सुसंस्कारित हो तो आवयश्क है कि हमारा बाल साहित्य भी वैसा हो जिसके संपर्क में आकर बच्चों का नैतिक उत्थान हो।
हम रचनाकार हैं, समाज को रचने की शक्ति हमारी लेखनी में व्याप्त है।अतः हमारी नैतिक जिम्मेवारी बनती है कि हम वैसे साहित्य का निर्माण करें जिसे पढ़कर एक स्वस्थ एवं सुंदर मन का निर्माण हो। कुछ भी लिखने से पहले हमें यह सोचना होगा कि हम क्या लिखें? क्यों लिखें? हमारे लिखने का उद्देश्य क्या है? क्योंकि हम जो लिखते हैं और हमारी रचना को जब पाठकगण पढ़ते हैं तो उनकी सोंच पर हमारी लेखनी का असर होता है। अतः लिखते वक्त हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि हम वैसा कुछ भी नहीं लिखे जिसे पढ़कर पाठकगण के मन में नकारात्मक भाव उत्पन्न हो। इसलिए हमें हमेशा अच्छी एवं सकारात्मक साहित्य का सृजन करना चाहिए। खासकर जब हम बाल साहित्य की रचना कर रहे होते हैं तो हमें अत्यधिक सजग रहने की आवयश्कता है क्योंकि बालपन में सीखी गई बातों का असर हमारे जीवन पर अत्यधिक होता है।
अतः बाल साहित्य वैसा हो जिसे पढ़-सुनकर बच्चों में मानवीय गुणों का विकास हो सके। राष्ट्रप्रेम या देशप्रेम की अवधारणा को तो छोटे बच्चे नहीं समझ पाएँगे परन्तु घर-परिवार, आस-पड़ोस, व अपने साथियों के प्रति उनके मन में प्रेम व भाईचारा की भावना विकसित हो, बाल साहित्य ऐसा हो। बाल साहित्य ऐसा हो जो बच्चों को प्रकृति प्रेमी बनाने में मददगार हो सके। हमारे बच्चे ज्यादा से ज्यादा रचनात्मक कार्यों में रुचि ले।साहित्य वो जो बच्चों को हर तरह की स्थिति में सामंजस्य स्थापित करने में सक्षम बना सकें,परिस्थिति चाहे कितनी भी विकट क्यों न हो बच्चे हमारे पथभ्रष्ट नहीं हो।
इन सब के अतिरिक्त बाल साहित्य की भाषा सरल एवं सुगम्य होनी चाहिए ताकि बच्चे सुगमता से लेखन के भाव को समझ सकें। साथ ही साथ बाल साहित्य का मनोरंजक होना अतिआवश्यक है।
कुमकुम कुमारी 'काव्याकृति'
No comments:
Post a Comment