साहित्य चक्र

04 July 2021

मैं भी जीना चाहता था




मैं मरना नहीं
मैं जीना चाहता था
मुझे भी जीना था
मां का लाडला बेटा
दोस्तों की जान
पापा की पहचान
बहन का हीरो
बन के रहना था 
मैं मरना नहीं 
मैं जीना चाहता था
मेरी भी कुछ सपने थे
कुछ अपने थे
रूठ गए अपने
टूट गए सपने
मैं मरना नहीं
जीना चाहता था
पर ऐसे घुट-घुट के नहीं
 खुल कर जीना था
कितने गम थे अंदर
फिर भी इन गमों को भूल
 आगे बढ़ता गया
चेहरे पर एक झूठी मुस्कान दिखा
 सारे गम सेहता गया
मैं मरना नहीं
 जीना चाहता था 
कुछ भी अच्छा नहीं लगता 
जब दिल अंदर से रोता है
आंखों में थे जो सपने
 वो हो रहे थे
 टूट कर चकनाचूर
मैं मरना नहीं 
जीना चाहता था
लोगों की बातों से डर कर 
गम का घुट 
अकेले पीता गया
और इनका जजमेंट 
जहर का काम कर गया
मन की बात बांटने से ज्यादा
 मर जाना अच्छा लगा
मैं मरना नहीं 
मैं जीना चाहता था ।।


                                                राधा पटेल
    

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