ए इंसान खुद से भी दो घड़ी मिल ले...
सारी जिंदगी दूसरों में कमियां ढूंढता रहा,,,
मानो कि परीक्षक हो ऐसे प्रश्न पूछता रहा...
आज कुछ अपने आप से भी पूछ ले...
ए इंसान खुद से भी दो घड़ी मिल ले...
वो अच्छा है वो बुरा है,,,
वह खोटा है वह खरा है ....
हर घड़ी दूसरों में अच्छाई बुराई ढूंढता रहा...
ऐसा कर अब खुद से खुद को भी ढूंढ ले...
समय निकाल और खुद से भी दो घड़ी मिल ले,,,
यह गलत है वह सही है,,
यह बात उसने क्यों कही है...
सही गलत के चक्रव्यूह में घूमता रहा....
पहले खुद को इस चक्रव्यूह से निकाल ले...
सोच मत, खुद से भी दो घड़ी मिल ले,,,
किसी के चरित्र को आंकने वाला कौन है तू,,,
किसी के आत्मसम्मान को भेदने वाला कौन है तू...
आत्मविश्लेषण कर और खुद को ही आंक ले,,,
वक्त लौट कर नहीं आएगा, खुद से भी दो घड़ी मिल ले..
सबको परखता है पर...
किसको समझता है?
सुन! आज खुद को परख के भी देख ले,,,
चल फिर खुद से भी दो घड़ी मिल ले..
अपराजिता मेरा अन्दाज़
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