साहित्य चक्र

10 July 2021

आज भी कल्पना




मेरे गीतों  में जीवित आज भी मेरी  प्रेम कहानी है
मेरे लब्जों में  अमर आज भी मेरी अमर जवानी है

तुमको  खोकर   मन  मेरा   शमशान  हुआ
विरह अग्नि में जलकर मन मेरा श्याम हुआ

हम तेरे नाम लिखित आज भी मेरा  मन वैरागी  है
 मेरे लब्जों में अमर आज भी मेरी अमर जवानी है

गंगा सी निर्मल गीता के सार सा प्रेमग्रन्थ मेरा
शबरी  के चखे  झूठे बेर  सा  है अनुबंध  मेरा

अगले जनम होगा मिलन आज भी मेरा मन आशीहै
मेरे लब्जों  में अमर  आज  भी मेरी अमर  जवानी है

गीतों की तुरपाई से  विरह घाव  मै  सिलती हूँ 
जुगनू सी जलकर रातो में आज भी मिलती हूँ 

तू  साँसो  में  मेरी  आज  भी  मेरा  मन  खाली है
मेरे लब्जों में अमर आज भी मेरी अमर जवानी है

ख्वाहिश में सिमटी तेरे नैनों की बूंद हूँ मै
साजिश  में सिमटी  गैरों  की  भूल  हूँ मै

आखर-2ढ़ाई आखरआज भी मेरा मन आशावादी है
मेरे  लब्जों  में अमर आज भी  मेरी  अमर जवानी है



                                    कल्पना भदौरिया 'स्वप्निल'


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