साहित्य चक्र

31 July 2021

बीत रहा जीवन





बीत  रहा  है  जीवन  सारा  ।
कब  सम्भलेगा  इन्सान  रे  ।।
प्राण - पंखेरू  उड़  जावैला  ।
ले - ले  अब तू  रब का नाम रे।।


अपने कर्मों  का लेखा  करले ।
कब  जाने  कब  जाना  पड़े  ।।
अपने  अन्तरतम  में  तू  झांक ।
साथ  चलेंगे  अच्छे  काम  रे  ।।


तू  जर  से  नर  कैसे  बना  ।
पढ़  जीवन  का  इतिहास रे ।।
अब  भी  तू  ना  सम्भला  तो ।
कब जाने कब आये पैगाम रे ।।


क्यूँ  माया  के  मद -  मोह  में ।
अंधेरों  का  भार  यूँ  ढो  रहे  ।।
खोल अब तू  मन की खिड़की ।
धरे रह जाएंगे सोना गहने दाम रे।।


जग  में आते तू साथ क्या लाया ।
खाली आया-खाली हाथ जाए रे।।
पाप - पुण्य  ही  तेरे साथ  चलेंगे ।
तो फिर कब लेगा  'हरि' नांम रे ।।


करले जग में कुछ तो पुरूषारथ ।
यश - यौवन - धन तो भंगुर  रे  ।।
नाचीज़' परहित-पवित्र राह तू चल।
कब ढल जाए जीवन की शाम रे।।

          
                                   मईनुदीन कोहरी


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