आज जरा तुम हंस दो फिर से
मुझको भी राहत हो जाए
वही पुरानी प्रीति जगा दो
मुझको फिर चाहत हो जाए..।।
वही प्रेम के गीत सुना दो
जो तुम गाया करते थे
खो जाऊं मैं मधुर धुनों में
मनभावन फिर ऋतु हो जाए..।।
वही प्रतिक्षा पहले जैसी
पदचापों की फिर हो जाए
पायल की छम-छम सुनकर फिर
मन मेरा ये खुश हो जाए..।।
वही जता दो हक फिर आकर
अपनेपन की डांट लगा दो
मैं कंधे पर सिर फिर रख दूं
आंखें खुशियों से भर जाएं..।।
आज वक़्त भारी है मुझ पर
अपना कोई साथ नहीं
साहस धैर्य साथ तुम दे दो
वक़्त बुरा ये कट जाए..।।
वक़्त बुरा ये कट जाए..।।
विजय कनौजिया
No comments:
Post a Comment