साहित्य चक्र

26 April 2020

ग़ज़ल..





कभी आ जाओ उल्फ़त की कहानी देखते जाओ
कहाँ गुज़री थी मेरी ज़िंदगानी देखते
जाओ
वचन ये देते हैं तुमको नहीं शिक़वा करेंगे अब
सुकूँ आ जाएगा अंतिम निशानी देखते
जाओ
न जाने मेरी साँसों की रवानी को हुआ क्या है
कि ये रुक रुक के चलती क्यों रवानी देखते
जाओ
ख़ुदा तो उनकी आँखों में नज़र आए अभी शायद
मगर उन आँखों में वहशत पुरानी देखते
जाओ
ज़ुबाँ तो कटनी थी मेरी बहुत ही बदज़ुबां था मैं
कफ़न सरकाओ मेरी बेज़ुबानी देखते जाओ

                                बलजीत सिंह बेनाम

No comments:

Post a Comment