साहित्य चक्र

03 April 2020

सबके अपने शब्दकोश

कितना बदल गया परिवेश

वेलेंटाइन  के  चक्कर  में  अजब- गजब है  वेश।
पुलवामा  की   कुर्बानी   को  भूल   रहा है देश।।

सही- गलत के मिश्रण से हर ओर बढ़ा है क्लेश।
मन  को रँगना  छोड़  लगे  रँगने  सतरंगी  केश।।

पछुवा  पवन  सदा झकझोरे संस्कृति होती शेष।
सबके  अपने शब्दकोश, शब्दों के भाव विशेष।।

कर्तव्यों  को  भूल  मनुज  हक के  देता आदेश।
धर्मों  पर  कब्जा  कर  बैठा  हो   जैसे  लंकेश।।

कबिरा  के  ढाई  आखर  का बचा सिर्फ उपदेश।
मन  के  चक्षु  निहार  रहा  बैठा बेबस अवधेश।।

                                              डॉ अवधेश कुमार अवध 


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