साहित्य चक्र

21 April 2020

नशा .....जीवन की बर्बादी



कुछ.... अठारह वर्ष का रहा होगा वो, 
जब उसने मदिरापान की शुरुवात कर दी,
अपनी स्वर्ण सी ज़िन्दगी, कैसे उसने खुद के हाथो राख कर दी,
घरवालो का लाडला और सबका प्यारा था वो,
अपने माँ बाबा की आँखों का तारा था वो।

एक दिन दोस्तों की संगत में पड़कर, उसने शराब का स्वाद चख लिया,
फिर ये रोज नशा करना तो उसने, अपने नित्य कर्मो में रख लिया,
नशे में डूबते पड़ते लडखडाते, चार दोस्त उसे हर रात घर छोड़ जाते,
माँ उसे देख अश्रु बहाती, पिता ये लत छोड़ने की हर रोज समझाते।

फिर सबने सोचा विवाह कर दो इसका, ये कुछ सुधर जायेगा,
घर परिवार में पड़ने पर, शायद ये नशे से मुकर जायेगा,
पर वास्तव में , उसने एक मासूम लड़की की जिंदगी बर्बाद कर दी,
सपनो से भरी टोकरी उसकी, रख अलमारी में बंद वो ताख कर दी।

समय बीता....उसका हर अपना उससें रूठा ,
परन्तु उसका नशे से ताउम्र साथ ना छूटा ,
रोज नशे में आना बीवी बच्चो पर हाथ उठाना , 
घर के सारे पैसे जेवर बस मदिरापान में उड़ाना।

बस...यही तक सीमित उसका जीवन हो गया था ,
वो पूरी तरह से नशे में खो गया था,
न खुद का होश रहता था, ना बच्चो की फिकर,
मदिरा ही खोजता बस,  वो जाता जिधर।

फिर....बत्तीस वर्ष की अवस्था में उसे कई रोगों ने पकड़ लिया, 
मृत्यु ने आकर उसे अपने आगोश में जकड़ लिया,
कितनी आसानी से ज़िन्दगी ने उसका साथ छोड़ दिया,
खुशहाल सा परिवार ....बस नशे की लत ने तोड़ दिया।

शव उठा ....वृद्ध माता पिता चीखते और बिलखते रह गए,
पत्नी सदमे में थी और बच्चे सिसकते रह गए,
हँसता खेलता परिवार देखो कैसे बिखर गया,
नशा फिर एक बार अपनी विजय कर गया,
नशा फिर एक बार अपनी विजय कर गया।


                                      आंशिकी त्रिपाठी अंशी


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