साहित्य चक्र

18 April 2020

क्या मुसीबत

!! "खामोश सड़क" !!

क्यूं सूनी मंजिल है और सूनी है ये कदमो भरी डगर
आहिस्ता खुद से पूछता है ये "खामोश सड़क" !
हुए हम तनहा, या तनहा हुआ लोगो का सफर
आहिस्ता खुद से पूछता है ये "खामोश सड़क" !!

कदमताल सूनी है, शोरगुल सुना है
जाने किसने ये खामोशियों का ताना-बाना बुना है
शौख से हैं बंद कमरों में
या टुटा है किसी बीमारी का कहर,
आहिस्ता खुद से पूछता है ये "खामोश सड़क" !!

हमने भी 'टूट-फुट' कर खुद को संभाला है
थोड़ा मुस्कुरा,जीवन के मुसीबतो को टाला है
ऐसी भी थी क्या मुसीबत 
जो बंद हो गए शहरो-के-शहर,
आहिस्ता खुद से पूछता है ये "खामोश सड़क" !!
आहिस्ता खुद से पूछता है ये "खामोश सड़क" !!

राहुल आदर्श

No comments:

Post a Comment